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(४३)
माकाशमें पक्षीयोंका गमन होना, सूर्यकि आताप, चन्द्रके शीतता, और कोलका मधुर स्वर यह सर्व पदार्थ स्वभावसे ही होते है बास्ते कालकि अपेक्षा करना बड़ी भारी भूल है सिवाय स्वभाबके कोई भी पदार्थ नहीं है वास्ते हमारा मत्त सबमें अच्छा है।
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(३) नियत बादी - नियत बादीयोंका मत्त है कि काल स्वभाबकि आवश्यक्ता नहीं है जो भवतव्यता हो बह ही कार्य होता है। उन्हीकों महान् समर्थ इन्द्रादिक भी मीटा नहीं सक्ते है और मोन होना योग्य कार्यको कोई अवतारादि भी करने को समर्थ नहीं है जैसे करसान लोक मूमिमें बीज बोते है उन्हीं में कीतनेक तो मूत्र से ही नष्ट हो जाते है कितनेक अंकुरे उगते ही नष्ट हो जाते है और भवितव्यता होते है वह फल द्वारा प्राप्त होते है । इसी माफीक वृक्ष और गर्भके जीव भी समझ लेना । तथा अभव्या जीवोंको काळ और जातीभव्य जीवोंको स्वभाव प्राप्ती होनेपर भी सोक्ष न जाना यह भी तो एक भवितव्यता ही है। ऋषि मुनि ध्यान लगाके प्रयत्नोंके साथ मनको अपने कब्जे करना इमेश चाहते है । परन्तु भवतव्यता हो जब ही साधन होता है रोग नष्टके लिये हजारों औषधियों लेते है परन्तु भवीतव्यता बिनो रोग नष्ट नहीं होते है इत्यादि सर्व पदार्थ भवितव्यता के ही अधिन है सिवाय भवीतव्यता के कुच्छ भी करने समर्थ कोई भी नहीं है वास्ते हमारा मानना अच्छा है
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(४) कर्मबादी = कर्मबादीयोंका मत है कि मो कुच्छ होता