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(४९) पीसत्यपणा (१) जीवका अवाच्यपणा (५ जीवका सत्यावच्य
(६) जीवका असत्यावच्यपणा (७) जीवका सत्यासत्यवाच्यपा। इन्ही सात प्रदोंमें अज्ञान मौख्य है। जैसे जीवपर ७ वोक है इसी माफोक अजीव, पुन्य, पाप, आश्रव, संकर, निजरा, बन्ध, मोक्ष एवं नवतत्वको सात सात प्रकारसे माननेसे ६३ मत्त होते हैं
और पदार्थकों सत्यपणे, असत्यपणे, सत्यापत्यपणे और अयाच्यपणे एवं ४ पूर्व ६ ३ में मीला देनेसे ६७ मत्त अज्ञानबादीयाका होता है।
(४) विनयवादी-विनयवादीयोका मत्त है कि क्रिया हो चाहे अक्रिय हो चाहे अज्ञान हो इन्होंसे कार्य कि सिद्ध नहो है। जो कुच्छ कार्य कि सिद्धि होती है वह विनयसे ही होती है। विनयसे माता पिता गुरू देवता और रानादि सर्व विनयसे हो प्रश्न होते है वास्ते विनय ही कारणा शोभा यश कीर्ति मान पूना भवान्तर में ऋद्धि प्राप्तीका पूर्ण साधन है इन्ही विनयवादीयोंका १२ मत्त है । यथा=(१) माताका विनय करना (:) पिताका विनय करना (३) गुरुका विनय करना (४) धर्मका विनय (५) जानका विनय (६, राजाका विनय (७) मर्यका विनय (८) श्रमण गादि वडोका विनय । एवं इन्हो आठोका मनसे, वचनसे, कायासे, दान सन्मान देनेसे यह च्यारों प्रकार के विनय करनेसे ८x१=३२ प्रकारका विनयवादीयोका मत्त है। . (१) क्रियावादीयोंका मत १८० (३) अज्ञानवादीयोंका सत्र १७ (२) मक्रियाबादीयोंका मत १ (४) विनयवादीयोंका मच ३२