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(५५) धर्मास्तिकाय, अधर्मास्तिकाय, माकाशास्ति और जीवास्तिजाबमें चोथो मांगो, पुद्गलास्तिकायमें परमाणुसे सुक्ष्म अनंतप्रदेशी पौसी स्कन्ध और कालके समबमें चौथा भागा। शेषमें तीमा
भागा।
आठ कर्म, छे भाव लेश्या, तीन दृष्टि, चार दर्शन, पांच शान, तीन मज्ञान, चार संज्ञा, कार्मण शरीर, मन वचनके योग, साकार, अनाकार उपयोग, मूत, भविष्य, वर्तमान काल इन ४१ बोलोंमें चौथा भागा पावे। .... छे द्रव्प लेश्या, कार्मण शरीर वनके चार शरीर और कायके बोम्य इन ११ बोलोंमें भागा तीमा पावे और सर्व द्रव्य, सर्व प्रदेश, सर्व पर्यायमें स्यात तीना स्यात चौथा भागा पावे। भावार्थनहीं मरूपी तथा रूपीमें च्यार स्पर्शवाले बोलोंमें 'अगुरुमधुर भागा है और रूपी मठ स्पर्शवाले बोलोंमें 'गुरु धु' मांगा समझना । इति । . (०) आधा कर्मी आहारादि भोगवनेसे साधु क्या करे। क्या बांधे क्या चिमे इत्यादि ? . (३०) आधा कर्मी भोगनेवाला सात कर्म स्थिल बांधा हो तो खुब जोरसे धन वान्थे । अल्प कालकी स्थितिको दीर्घकालकी स्थिति करे; अल्प प्रदेश हो तो बहुत प्रदेश करे । मंद रसवान हो तो तीव्र रसवाला करे। मायुष्य कर्म स्यात् वान्धे स्यात् न बांये परंतु असाता वेदनी वारंवार वांधे । जिस संसारका आदि और अंत नहीं उसमें वारंवार परिषटन करे।