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केदेव, अनकाकेदेव, अग्रमहेषीदेवांगनाओं आदिके परिवारसे हाथमें वजधारण कीये हुवे दैत्य देवोके पुरको भागता है। इसी माफीक मुनी मंडलमें बहुश्रुतिनी महाराज श्रुतज्ञानरूपी सहस्रचक्षु और निनाज्ञा रूपी वज्र और क्षात्यादि अनेक उमारावोंके साथ परमत्तिरूपा दैत्योंका पराजय करनेमें कटीबद्ध हूवे शोभते है।।
(१०) जेसे सहस्र कीर्णकर प्रकाश करता हूवा सूर्य अन्धकारका नाश करते हैं और जेसे जेसे सूर्य तापक्षेत्रके मध्यभागमें आवे वेसे वेसे अपनि तेनका अधिकाधिक प्रकाश जाज्वळामान करते हुवे अपनि लेश्याकों छोडते है । इसी माफीक बहुश्रुतिनी महाराज आत्मशक्ति रूपी कर्णो सहित ज्ञान रूपी सूर्यसे मिथ्यात्व और अज्ञान रूपी अन्धकारका नास करते है। जेसे २ ज्ञान पर्यव और संयम श्रेणी परिणाम बडते है वेसे वेसे शत्रु (कम) वों पर प्रज्वलन तेज पडते ही शत्रु भस्म समान हो जाते है और प्रसस्थ लेण्याद्वारे पाखंडी अधर्म परूपोंका पराजय करते हुवे शासन प्रभावीक बहुश्रुतिजी महाराज सुशोभायमान होते है।
(११) जेसे गृहगण नक्षत्र तारावोंके समुहसे पूर्णमासीका चन्द्र शोभनिक होता है इसी माफीक बहुतसे पद्विधर मुनि तथा शिष्य प्रशिष्यके परिवारसे ज्ञान समऋद्धिसे बहुश्रुतिजी महाराज शोभनिय होते है।
(१२) जेसे चौरादिके भय रहित स्थान भंडार कोठरादिमें गृहस्थोंका धन धान्यादि बादा रहीत शोभनिय होता है इसी माफीक प्रमादादि चोरोंका भय रहीत बहुश्रुतिजी महाराज श्रुत धर्म चरित्र धर्म और क्षात्यादि नाना प्रकारका जो भावसे
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