Book Title: Shatkhandagama Pustak 12
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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(सिरि-भगवंत-पुष्पदंत-भूदबलि-पणीदो
छक्खंडागमो सिरि-वीरसेणाइरिय-विरइय-धवला-टीका-समण्णिदो
___तस्स चउत्थे वेयणाए वेदणाभावविहाणाणियोगहार ।
On ( वेयणभावविहाणे ति तत्थ इमाणि तिण्णि अणियोगदाराणि णादव्वाणि भवंति ॥ १ ॥
तत्थ भावो चउव्विहो-णामभावो ठवणभावो दव्वभावो भावभावो चेदि । तत्थ भावसद्दो णामभावो णाम । सब्भावासब्भावसरूवेण सो एसो ति अभेदेण संकप्पिदत्थो ढवणभावो णाम । दव्वभावो दुविहो-आगमदव्वभावो णोआगमदव्यभावो चेदि । तत्थ
अब वेदनाभावविधान प्रारम्भ होता है। उसमें ये तीन अनुयोगद्वार ज्ञातव्य
भाव चार प्रकारका है-नामभाव, स्थापनाभाव, द्रव्यभाव और भावभाव । उनमें भाव यह शब्द नामभाव है। सद्भाव या असद्भाव स्वरूपसे 'वह यह है' इस प्रकार अभेदसे सङ्कल्पित पदार्थ स्थापनाभाव कहा जाता है। द्रव्यभाव दो प्रकारका है. आगमद्रव्यभाव और नोआगम
छ. १२-१.
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