Book Title: Shatkhandagama Pustak 02
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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णमोकार मंत्रके आदिकर्ता
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और वेदना अनुयोगद्वार वेदनाखंडके तथा फास, कम्म, पयडि और बंधन के बंध और बंधनीय भेद वर्गणाखंड के भीतर हैं । इससे हमारे विषयका निर्विवादरूपसे निर्णय हो जाता I
प्रथम जिल्दकी भूमिका में ठीक इसीप्रकार खंडविभागका परिचय कराया जा चुका है उस परिचयकी ओर पाठकों का ध्यान पुनः आकर्षित किया जाता है ।
४. णमोकार मंत्रके आदिकर्ता -
१.
जो ख्याति और प्रचार
हिन्दुओं में गायत्री मन्त्रका है तथा बौद्धोंमें त्रिसरण मन्त्रका था, वही जैनियोंमें णमोकार मन्त्रका है । धार्मिक तथा सामाजिक सभी कृत्यों व विधानोंके आरम्भमें जैनी इस मन्त्रका उच्चारण करते हैं । यही उनका दैनिक जपमन्त्र है । इसकी 1 प्रख्यातिका एक पथ निम्न प्रकार है, जो नित्य पूजनविधान में उच्चारण किया जाता है-
एसो पंच-मोयारो सव्वपापप्पणासणो । मंगलाणं च सव्वेसिं पढमं होइ मंगलं ॥
अर्थात् यह पंच नमस्कार मन्त्र सब पापों का नाश करने वाला है और सब मंगलों में प्रथम [ श्रेष्ठ ] मंगल है |
इस मन्त्रका प्रचार जैनियोंके तीनों सम्प्रदायों - दिगम्बर, श्वेताम्बर और स्थानकवासियोंमें समानरूपसे पाया जाता है । तीनों सम्प्रदायोंके प्राचीनतम साहित्य में भी इसका उल्लेख मिलता है । किंतु अभी तक यह निश्चय नहीं हुआ कि इस मन्त्रके आदिकर्ता कौन हैं । यथार्थतः यह प्रश्न ही अभी तक किसी ने नहीं उठाया और इस कारण इस मन्त्रको अनादिनिधन जैसा पद प्राप्त हो गया 1
किन्तु षट्खंडागम और उसकी टीका धवलाके अवलोकनसे इस णमोकार मन्त्र के कर्तृस्वके सम्बन्धमें कुछ प्रकाश पड़ता है, और इसीका यहां परिचय कराया जाता है ।
षट्खंडागमका प्रथम खण्ड जीवट्ठाण है और इस खंडके प्रारम्भ में यही सुप्रसिद्ध मन्त्र पाया जाता है । टीकाकार वीरसेनाचार्य के अनुसार यही उक्त ग्रन्थका सूत्रकारकृत मंगलाचरण है । वे लिखते हैं कि
मंगल - णिमित्त - हेऊ - परिमाणं णाम तह य कत्तारं । वागरिय छप्पि पच्छा वक्खाणउ सत्थमाइरियो ॥ इदि णायमाइरिय - परंपरागयं मणेणावहारिय पुव्वाइरियायाराणुसरणं तिरयणहेउ त्ति पुप्फदंताइरियो मंगलादीणं छष्णं सकारणाणं परूवणटुं सुत्तमाह
णमो अरिहंताणं, णमो सिद्धाणं, णमो आइरियाणं, णमो उवज्झायाणं, णमो लोए सव्वसाहूणं ॥
(सं० प० १, पृ० ७ अर्थात् ' मंगल, निमित्त, हेतु परिमाण, नाम और कर्ता. इन छहों का प्ररूपण करके
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