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श्री संवेगरंगशाला
करते हैं कि उसके पहले ही उस पुरुष के उन सबको स्तम्भित कर दिया उसके बाद वह वज्रलेप से बनाये हो अथवा पत्थर में गड़े हों ऐसे स्थिर शरीर वाले बना दिया, और वह पुरुष एक क्षण क्रीड़ा करके अल्प भी मन में क्षोभ बिना कनकावती को अपने हाथ से उठाकर प्रस्थान कर गया। यह सारा वृतान्त राजा ने जाना, तब उसने विचार किया कि-ऐसी शक्ति वाला क्या यह कोई देव विद्याधर अथवा विद्या सिद्ध होगा ? यदि वह देव हो तो उसे यह मानुषी स्त्री का क्या काम ? और यदि विद्याधर हो वह भी भूमिचर स्त्री की इच्छा नहीं करता, और यदि विद्या सिद्ध हो तो निश्चय ही वह भी विशिष्ट रूप वाली पाताल कन्या आदि दिव्य स्त्रियाँ होने पर भी इस स्त्री को क्यों ग्रहण करे? अथवा मृत्यु नजदीक आने के कारण धातु क्षोभ हुए किसके हृदय में अकार्य करने की इच्छा नहीं है ? अर्थात् जब मृत्यु नजदीक आती है तब ऐसे कार्य करता है। अथवा ऐसे विचार करने से क्या लाभ ? वह भले कोई भी हो, वर्तमान में उसकी उपेक्षा करना योग्य नहीं है। यदि मैं स्त्री की भी रक्षा नहीं कर सकता, तो पृथ्वी मण्डल के राज्य की रक्षा किस तरह करूँगा? तथा मेरा यह कलंक लम्बे काल तक अन्य देशों में भी जाहीर होगा। इस कारण से रामचन्द्र जी भी सीता को लेने के लिए लंका गये थे। इसलिए वह दुराचारी जब तक दूर देश में नहीं पहुँचता उसके पहले ही मैं स्वयमेव वहाँ जाकर उस अनार्य को शिक्षा करूँ। और इस तरह बहुत लम्बे काल पूर्व सिखी हुई मेरी स्तम्भ आदि विद्याओं के बल की परीक्षा करूँ, ऐसा सोचकर कुछ सुभटों के साथ राजा चला। राजा को जाते देखकर उसके पीछे बड़ा सैन्य भी चला।
सैन्य चलते ऊँचे हाथियों से अति भयंकर था, मगरमच्छ आदि चिन्हों वाली ध्वजाओं के समूह से शोभित रथ थे, श्रेष्ठ सेवकों से सब दिशायें भर गई थीं, सर्व दिशाओं में फैले हुए घोड़ों का समूह था, गणनायक और दण्डनायकों से युक्त, युवतियों को और कायर को डराने वाला युद्ध सामग्री उठाये हुए ऊँटों का समूह वाला था, वेग वाले वाहनों के चलने से उड़ी हुई भूमि की रजवाला उसमें सुभट हाथियों, घोड़े आदि रत्नों के अलंकार से सुशोभित थे। तलवार आदि महाशस्त्रों से भयजनक भय से काँपते बालकों को मार्ग से भगाते, प्रसन्न हुए भाट चारण उसमें विरूदावाली बोल रहे थे, ऐसे घोड़ों के हेयारव से भयभीत बने ऊँटों के समूह वाला, छत ऊपर चढ़े मनुष्यों द्वारा देखा जाता, हर्ष से विकसित नेत्र वाले महासुभटों युक्त बलवान शत्रुओं को क्षय करने में समर्थ तेजस्वी यश बाला महान चतुरंग सैन्य नगर में से तुरन्त