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- श्री संवेगरंगशाला
से शोभती भजाओं से अति समर्थ और सर्व सम्पत्ति युक्त हे देव ! कमल के पत्र समान लम्बे नेत्र वाली लक्ष्मी से आपकी जय हो ! जय हो! इस तरह स्तुतिपूर्वक आशीर्वाद देकर कहा कि-लाखों शत्रुओं का पराभव करने वाले हे स्वामिन् ! हमारी विनती है कि अन्य पुरुषों से रखवाली करते जाग्रत और सर्व दिशाओं में देखते हुए हम अन्तपुरः में होने पर भी जंगली हाथी के समान, रोकने में असमर्थ एक भयंकर पुरुष किसी स्थान से अचानक आया। वह मानो तीक्ष्ण शस्त्र से युक्त साक्षात् विष्णु के समान, पर्वत सदृश महान् शरीर वाला, वीर वलय धारण करने वाला बड़ी भुजाओं वाला और अक्षुब्ध मन वाला, निर्भय वह पहरागिरि का भी अवगणना करके कनकवती रानी निवास में जैसे पति अपने घर में प्रवेश करता है वैसे गया है। हे राजन् ! तीक्ष्ण धार वाली तलवार के प्रहार भी उसके वज्र स्तम्भ समान शरीर पर लगता नहीं है, और गर्व से उद्भट सुभट भी उसके फूंक के हवा मात्र से गिर गये हैं। मैं मानता हूँ कि उसने करुणा से ही हमारे ऊपर प्रहार नहीं किया है। अन्यथा यम सदृश उसे कौन रोक सकता है ? हे स्वामिन् ! इससे पूर्व कभी नहीं सुना और न ही देखा ऐसे प्रसंग हमें आ गया है, इसमें कुछ भी समझ में नहीं आता है, अतः अब आपकी जो आज्ञा हो वह हम करने को तैयार हैं।
इस प्रकार सुनकर क्रोध के आवेग से उद्भ्रान्त भृकुटी द्वारा भयंकर, ऊँचे चढ़े भाल प्रदेश वाला, बारम्बार होंठ को फड़फड़ाते और वक्र भकुटी वाले राजा ने ताजे कमल के पत्र समान लम्बी अपनी आँखों से सिद्ध पुरुषाकार वाले, पराक्रमी, सामन्त, सुभट और सेनापतियों के ऊपर देखा, यम की माता के समान राजा की भयंकर दृष्टि को देखकर अति क्षोभित बने सभी सामन्त आदि मानो चित्र में चित्रित किये हों इस तरह भय से स्तब्ध हो गये। इस व्यति को सूनकर अभिमान रहित बने सेनापतियों ने तथा सुभटों ने भी उत्तम साधुओं के समान तुरन्त संलीनता में मन लगाने के समान शून्य मन वाले हो गये। हाथ में तलवार को धारण करते राजा भी सभा को शून्य शान्त देखकर बेकार पराक्रम का अभिमान करने वाले 'हे अधर्म सेवको ! तुम्हें धिक्कार है ! मेरी नजर के सामने से जल्दी दूर हट जाओ' ऐसा बोलते कटिबंधन से बद्ध होकर उसी समय राजभवन से बाहर निकल गया। उसके बाद चण्ड, चपल, मंगल, विश्वभर आदि अंग रक्षकों मस्तक पर अंजलि जोड़कर भक्तिपूर्वक राजा को विनती की कि-हे राजन् ! आप हमें क्षमा करो। हमें आज्ञा दीजिए और इस उद्यम से आप रुक जाओ। हमारी प्रथम प्रार्थना भंग करने योग्य नहीं है, यदि आप स्वयं नहीं रुकते तो भी एक क्षण आप प्रेक्षक रूप बनकर देखो।