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श्री संवेगरंगशाला
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खतम करने वाला, और नगर के दरवाजे की परिधी के समान मजबूत भुजदण्ड से प्रचण्ड शत्रुओं को भी नाश करने में शूरवीर था तथा अपने रूप से कामदेव को भी पराभव करने वाला, चन्द्र समान मुख वाला, कमल के समान नेत्र वाला और अत्यन्त प्रचूर सेना वाला महासेन नाम का राजा था । वह एक होने पर भी अनेक रूप वाला हो इस तरह सौभाग्य गुण से स्त्रियों के हृदय में, दानगुण से याचकों के हृदय में और विद्वता से पंडित के हृदय रूपी घर में निवास करता था । अर्थात् विविध गुणों से प्रजाजन को आनन्द होता था । उसकी विजय युद्ध यात्रा में समुद्र के फेन के समूह के समान उज्जवल छत्र के विस्तार से ढक गया दिशाचक्र मानो आनन्द से हँसता था ऐसा शोभता था । शत्रुओं को तो उसने सुसाधु के समान राज्य की मूर्च्छा छुड़वा दी थी, उनके विषय सुख का त्याग करवा कर और भिक्षावृति से जीवन व्यतीत करने वाला होने से मानो वह उनका धर्मगुरु बना हुआ था । वह राजा जब युद्ध के अन्दर हाथ में पकड़ी हुई तलवार चलाता था, तब उसमें से उछलते नीलकान्ति की छटा से उसका हाथ मानो धूमकेतू-तारा उगा हो ऐसा दिखता था । बुद्धि का प्रकर्ष तो महात्मा जैसी थी कि ऐसा कुछ नहीं कि जिसको नहीं जाने, समझे, परन्तु निर्दक्षिण्यता ( चतुराई रहित ) और खलता को वह जानता भी नहीं था अर्थात् उसकी बुद्धि सम्यग् होने से दोष उसमें नहीं था । वह बहुत श्रेष्ठ हाथी घोड़ों से युक्त और बहुत विशाल पैदल सेना वाला था परन्तु वह राजा सुखी था वह बड़ा आश्चर्य था ।
उस राजा में एक ही दोष था कि स्वयं सद्गुणों का भण्डार होने पर भी उसने सर्वशिष्ट पुरुषों को हाथ बिना, वस्त्र बिना और नाक बिना के कर दिया था । यहाँ विरोधाभास अलंकार है उसे रोकने के लिए कर चुंगी बिना, वसण - व्यसन बिना और अन्य के प्रति आशा या शिक्षा नहीं करने वाला था अर्थात् राजा दान इतना देता था कि शिष्ट पुरुष को हाथ बिना दिया, ऐसे श्रेष्ठ कपड़े पहनता था कि दूसरे वस्त्र बिना दिखते थे, तथा राजा ने ऐसी इज्जत प्राप्त की थी, उसके सामने किसी की भी इज्जत आबरू नहीं रही थी । शरदऋतु को भी जीतने वाली मुखचन्द्र के कान्तिवाली अभयादित अनेक रूप से युक्त और सुशोभित सुन्दर शणगार से लक्ष्मी देवी समान, उत्तम कुल में जन्म लेने वाली उत्तम शील से अलंकृत पति के स्नेह की विशेषतया प्रिय, पतिभक्ता, सद्गुणों में आसक्त कनकवती नामक रानी थी । उसे सारी कलाओं की कुशलता से युक्त, रूपवान, गुण का भण्डार, सौम्य आदि गुणवाला, मानो राजा का दूसरा रूप हो, इस तरह जयसेन नाम का पुत्र था । उस राजा के सुविशुद्ध बुद्धि के