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उदाहरपों का विवेचन किया गया है।
पाठ अध्याय में, 3। सूत्र हैं जिसमें उपमा, उत्प्रेक्षा, रूपक, निदर्शना दीपक, अन्योक्ति, पर्यायोक्त, अतिशयोक्ति, आक्षेप, विरोध, सहोक्ति, समासोक्ति, जाति (स्वभावोक्ति), व्याजस्तुति, श्लेष, व्यतिरेक, अर्थान्तरन्यास, सप्सन्देह, अपह्नुति, परिवृत्ति, अनुमान, स्मृति, भान्ति, विषम, सम, समुच्चय, परिसंख्या, कारपमाला वाकर - इन 29 अर्थालंकारों का विवेचन किया
गया है।
सप्तम अध्याय में 52 सूत्र हैं। इसमें नायक का स्वरूप, उसके आठ सात्त्विक गुण, नायक के भेद तथा लक्षण, अवस्थाभेद से नायक के भेद, प्रतिनायक का स्वरूप, नायिका का स्वरूप, नायिका के भेद, स्त्रियों के सत्वज अलंकारों का सलक्षप सोदाहरप निरूपप तथा प्रतिनायिका आदि की संक्षिप्त चर्चा प्रस्तुत की गई है।
____ अष्टम अध्याय में 13 सूत्र हैं। इसमें प्रबन्धात्मक काव्य भेदों का निरूपप किया गया है। सर्वप्रथम प्रबन्धकाव्य के दो भेद- दृप्रय तथा अव्य, पुनः मय के दो भेद - पाश्य तथा गेय, तत्पश्चात् पाल्य के नाटक, प्रकरप नाटिका, समवकार, ईहामृग, डिम, व्यायोग, उत्सृष्टि कांक, प्रहसन, भाप, वीथी तथा स्टक आदि भेदों का लक्षप किया गया है। इसी श्रृंखला में गेय के डोम्बिका, भाप, प्रस्थान, शिंगक, भापिका, प्रेरप, रामक्रीड, हल्ली तक, रासक, गोष्ठी, श्रीगदित, राग तथा काव्य का लक्षप दिया गया है।