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काव्य-मी मीसा तथा काव्यप्रकाश से लम्बे - लम्बे उद्धरण पस्तुत किये गये है। फलतः कतिपय विद्वान इते संग्रह - गन्थ की कोटि में परिगपित करते हैं, किन्तु कत्तिपय नवीन मान्यताओं का प्रस्तुत गन्ध में विवेचन मिलता है। आचार्य मम्म्ट ने 67 अलंकारों का उल्लेख किया है जबकि हेमचन्द्र ने मात्र
29 अलंकारो का उल्लेख कर शेष का इन्हीं में अन्तर्भाव कर दिया है।
मम्मट काव्यप्रकाश को दस उल्लासों में विभक्त करके भी उतना विषय नहीं दे पाये है, जितना हेमचन्द्राचार्य ने काव्यानुशासन के मात्र आठ अध्यायों में प्रस्तुत किया है। इसके अतिरिक्त हेमचन्द्राचार्य ने अलंकारशास्त्र में सर्वप्रथम नाट्यविषयक तत्वों का समावेश कर एक नवीन परम्परा का प्रपयन किया जिसका अनुकरप परवर्ती आचार्य विश्नाथ आदि ने भी किया है।
"काव्यानुशासन” के तीन प्रमुख भाग हैं - 1. सूत्र (गद्य में,),2. व्याख्या तथा 3, वृत्ति। “काव्यानुशासन मे कुल सूत्र 208 हैं। इन्हीं सूत्रों को “काव्यानुशासन" कहा जाता है। सूत्रों की वयाख्या हेतु अलंकारचूपामपि तथा इस व्याख्या को अधिक स्पष्ट करने हेतु उदाहरणों सहित “विवेक" नामक वृत्ति लिखी गयी है। तीनों के कर्ता आचार्य हेमचन्द्र ही
हैं।
यह गन्य आठ अध्यायों में विभक्त है।
प्रथम अध्याय में 25 सूत्र हैं। सर्वप्रथम मंगलाचरप के पश्चात् आचार्य ने काव्य-प्रयोजन, काव्य-हेतु, कवि-समय, काव्य-लक्षप, गुप-दोष का सामान्य लक्षप, अलंकार का सामान्य लक्षप, अलंकारों के गहण तथा त्याग का नियम,