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तिद राज जय सिंह की मृत्यु के अनंतर विoo ॥११ (समय 11431173 ई.) में कुमारपाल राज्याभिषिक्त हुआ, जिसके साथ आ. हेमचन्द्र का 30 वर्ष तक सम्बन्ध रहा।
आचार्य हेमचन्द्र का कुमारपाल के साथ गुरू शिष्य सदृश संबंध था। कुमारपाल की प्रार्थना पर आचार्य हेमचन्द्र ने “योगशास्त्र", "वीतरागस्तुति" एवं "त्रिषष्ठिशाला कापुरुषचरित पुराप की रचना की। संस्कृत में दयाश्रयकाव्य के अंतिम सर्ग तथा प्राकृत दयाश्रय कुमारपाल के समय में ही लिये गये। "प्रमापमी माता' की रचना इसी समय में हुई। कुमारपाल ने 700 लेखकों को बुलाकर हेमचन्द्र के गान्ध लेसब्द करवाये।'
वि0सं0 1229 (117ई.) में 84 वर्ष की अवस्था में आ. हेमचन्द्र ने अपनी ऐहिक लीला समाप्त की पभावकचरित के अनुसार राजा कुमारपाल को आचार्य का वियोग अतब्य रहा तथा छ: मास पश्चात वह भी स्वर्ग सिधार गया।
आचार्य हेमचन्द्र की साहित्य साधना अत्यन्त विशाल तथा व्यापक
है। उन्होंने व्याकरण, कोश, छन्द, अलंकार, दर्शन, पुराप, इतिहास आदि विविध विषयों पर सफलता पूर्वक साहित्य सृजन किया है। साहित्यसृजन की असाधारप क्षमता तथा अलौकिक प्रतिभा मानो एकाकार होकर आचार्य हेमचन्द्र के रूप में मर्तरूप हो गई थी। उनकी साहित्य सेवा को देखकर विद्वानों
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आ. हेमचन्द्र, पृ. 36