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तथा अपने विद्याध्ययन का तम्पूर्ण श्रेय हेमचन्द्र अपने गुरू को देते हैं।' आचार्य देवचन्द्रसूरि से दीक्षित होने के पश्चात् आ. हेमचन्द्र ने तर्क, लक्षप तथा साहित्य उसयुभी जो महाविधायें थी पर अल्प अवधि में ही प्रवीपता प्राप्त कर ली। तत्पश्चात उन्होंने अपने गुरू के साथ विभिन्न स्थानों में भ्रमण करते हुए अपने शास्त्रीय व व्यावहारिक ज्ञान में काफी वृद्धि की। आचार्य हेमचन्द्र की साहित्य साधना दो महान् राजाओं की त्रछाया में परिवदित व विकसित हुई - सिद्धराज जयसिंह तथा समाट कुमारपाल। वे इन दोनों राजाओं के राजगुरू थे।
जय सिंह सिद्धराज का शासनकाल वि. सं. ।।51-11११ (1093 से 1143 ई.) तक रहा। आचार्य हेमचन्द्र तथा उनके आश्रयदाता सिद्धराज जयसिंह समकालीन ही नहीं समवयस्क भी थे। राजा जयसिंह से उनका प्रथम परिचय ।। 36 ई. में मालव विजयोत्सव के समारोह के अवसर पर हुआ था। उस समय उनकी अवस्था 46 वर्ष की थी। इसके बाद 7 वर्ष तक राजा जयसिंह सिदराज के साथ उनका सम्बन्ध रहा। इन सात वर्षों के थोड़े से काल में राजा जयसिंह के प्रोत्साहन व पेरपा ते उन्होंने विपुल तथा महत्वपूर्ण साहित्य की रचना की है।
1. शिष्यस्तस्य च तीर्थमकमवने पावित्रयकृज्जंगमम्।
सर रितपः प्रभाववसतिः श्री देवचन्द्रोऽभवत्। आचार्यो हेमचन्द्रोऽभूतत्पादाम्बुजषट्पदः तत्प्रसादादधिगतज्ञानसम्पन्न महोदयः।।
त्रि.श. पुण्च प्रशास्ति श्लोक 14, 15
आचार्य हेमचन्द्र पृष्ठ 19 से उद्धृत 2. काव्यानुशासन - हेमचन्द्र, प्रो0 पारीख की अंग्रेजी प्रस्तावना,
पृ. 266