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के सहयोग से चाचिग ने सम्पन्न किया। गुरू के द्वारा दिये गए हेमचन्द्र नाम से प्रसिद्ध यह 36 सरिगुपों से अलंकृत तरिपद पर अभिषक्त हुआ।
यही वृतान्त किंचित रूपांतर के साथ सोमपभतरिकृत "कुमारपाल प्रतिबोध (वि. सं. 1241), प्रभाचन्द्रतरिकृत "प्रभावकचरित (वि. सं. 1334), जिनमंडनउपाध्यायकृत "कुमारपाल प्रबन्ध (वि. सं. 1392) में तथा राजशेखर सूरि ने प्रबन्धकोश (वि. सं. 1405) में प्रस्तुत किया है जिसकी चर्चा डा. मुसलगांवकर द्वारा की जा चुकी है।
सोमप्रभतरि के अनुसार चांगदेव मामा नेमिनाग की अनुमति से देवचन्द्राचार्य के साथ स्तम्मतीर्थ (सम्भात) पहुंचा जहां जैनसंघ की अनुमति से चांगदेवको दीक्षा दी गई तथा उसका नाम सोमचन्द्र रक्या गया। अपार ज्ञानराशि संचित कर लेने पर उन्हें श्रमपों का नेता गान्धार अथवा आचार्य पद पर प्रतिष्ठित किया गया। सोमचन्द्र का शरीर सुवर्प के समान तेजस्वी एवं चन्द्रमा के समान सुन्दर था इसलिये वे हेमचन्द्र कहलाये।'
1. आचार्य हेमचन्द्र, पृ. 13-16 2. आचार्य हेमचन्द्र, पृ. 12 व 16
आचार्य हेमचन्द्र पु. 13