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ने उन्हें 'कलिकाल सर्वस, जैती उपाधि से विभाषित किया है।
___ शब्दानुशासन, काव्यानुशासन, छन्दोनुशासन, दयाश्रय महाकाव्य, योगशास्त्र, द्वात्रिंशिकार, अभिधान चिन्तामपि तथा त्रिषष्टि शाला - कापुस्षचरित - ये उनकी प्रमुख रचना है।
काव्यानुशासन
संस्कृत अलंकार गन्थों की परम्परा में काव्यानुशासन" आचार्य हेमचन्द्र द्वारा प्रपीत अलंकार विषयक एकमात्र गन्थ है। इसकी रचना वि. सं0 1196 के लगभग हुई है।
यह गन्य नियतागर प्रेस, बम्बई की "काव्यमाला" गन्थावली में स्वोपज्ञ दोनों बृत्तियों के साथ प्रकाशित हुआ था। फिर महावीर जैन विद्यालय बम्बई से सन् 1938 में प्रकाशित हुआ। जिसमें डा. रसिक लाल पारिय की प्रस्तावना एवं आर.व्ही. आठवले की व्याखा है।
"काव्यानुशासन में सूत्रात्मक शैली का प्रयोग किया गया है। काव्यप्रकाश के पश्चात रचे गये प्रस्तुत गन्थ में ध्वन्यालोक, लोचन, अभिनवभारती,
1. हिस्ट्री आफ इंडियन लिटरेचर इएम, विन्टरनिट्स वाल्यूम सेकेण्ड,
पृ. 282 2. जैन साहित्य का बृहत् इतिहास, भाग 5, पृ. 100