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हेमचन्द्र के जन्म के पूर्व ही उनकी भवितव्यता के लक्षप प्रकट होने लगे थे। जब वे गर्भ में ही थे, तभी उनकी माता ने एक सुन्दर तथा आश्चर्यजनक स्वप्न देखा था। इस सन्दर्भ में विविध ग्रन्थों - "कुमारपालप्रतिबोध', "प्रबन्धकोश", एवं प्रभावक चरित” आदि में अनेक प्रकारसेउल्लेख मिलता है। डा. मुसलगांवकर ने भी इसकी विस्तृत चर्चा "आचार्य हेमचन्द्र' नामपुस्तक में की है।
प्राचीन संस्कृत ग्रन्थों से ज्ञात होता है कि चांगदेव धार्मिक प्रवृत्ति का बालक था। माता के साथ नित्यप्रति मंदिर जाना, प्रवचन सुनना, गुरूजनों के प्रति श्रद्धाभाव रखना, धार्मिक क्रियाकलाप आदि उसके दैनिक कार्य थे।
मतुंगतरिकृत "प्रबन्ध चिन्तामपि" के अनुसार एक बार देवचन्द्राचार्य अपहिलपन्तन से प्रस्थान कर तीर्थयात्रा के पंसग में धन्धुका पहुँचे। वहाँ वे जब मोढवंशियों के जैन - मंदिर में देवदर्शन कर रहे थे तभी आठ वर्षीय बालक चांगदेव अपने बालचापल्य स्वभाव से देवचन्द्राचार्य की गद्दी पर जा बैठा। उसके अलौकिक राम-लक्षपों को देखकर आचार्य बालक को प्राप्त करने की इका से चाचिंग के निवास स्थान पर पगे। उस समय चायिग बाहर गये थे अतः देवचन्द्र ने उनकी पत्नी से बालक चांगदेव को प्राप्त करने की अभिलाषा प्रक्ट की । पाहिपी देवी ने आचार्य के प्रस्ताव का हृदय से स्वागत करते हुए मी गृहपति की अनुपस्थिति में बालक को देने में असमर्थता व्यक्त की। पर बाद में उपस्थित जन समुदाय का अनुरोध स्वीकार करते हुए अपने गुपी पुत्र को