Book Title: Pragnapana Sutra Part 01
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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प्रथम प्रज्ञापना पद - रूपी अजीव प्रज्ञापना
२९
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वि, लुक्ख फास परिणता वि। संठाणओ परिमंडल संठाण परिणता वि, वट्ट संठाण परिणता वि, तंस संठाण परिणता वि, चउरंस संठाण परिणता वि, आयय संठाण परिणता वि २०, १००।
भावार्थ - जो वर्ण से शुक्ल (सफेद) वर्ण रूप परिणत है वह गंध से सुरभि गंध और दुरभिगंध रूप भी परिणत होता है। रस से तीखा, कडुआ, कषायला, खट्टा और मधुर (मीठा) रस रूप भी परिणत होता है। स्पर्श से कर्कश, मृदु, गुरु, लघु, शीत, उष्ण, स्निग्ध और रूक्ष स्पर्श रूप भी परिणत होता है। संस्थान से परिमंडल, वृत्त, त्र्यस्र (त्रिकोण) चतुरस्र (चतुष्कोण ) और आयत संस्थान रूप भी परिणत होता है २०।
जे गंधओ सुब्भिगंध परिणता ते वण्णओ काल वण्ण परिणता वि, णील वण्ण परिणता वि, लोहिय वण्ण परिणता वि, हालिद्द वण्ण परिणता वि, सुक्किल वण्ण परिणता वि, रसओ तित्त रस परिणता वि, कडुय रस परिणता वि, कसाय रस परिणता वि, अंबिल रस परिणता वि, महुररस परिणता वि। फासओ कक्खडफास परिणता वि, मउय फास परिणता वि, गरुय फास परिणता वि, लहुयफास परिणता वि, सीय फास परिणता वि, उसिण फास परिणता वि, णिद्ध फास परिणता वि, लुक्ख फास परिणता वि, संठाणओ परिमंडल संठाण परिणता वि, वट्ट संठाण परिणता वि, तंस संठाण परिणता वि, चउरंस संठाण परिणता वि, आयय संठाण परिणता वि २३। ___ भावार्थ - जो गंध से सुरभि गंध रूप परिणत है वह वर्ण से कृष्ण वर्ण रूप, नील, लोहित, हारिद्र और शुक्ल वर्ण रूप परिणत होता है। रस से तीखा, कडवा, कषायला, खट्टा और मधुर रस रूप परिणत होता है। स्पर्श से कर्कश, मृदु, गुरु, लघु, शीत, उष्ण, स्निग्ध और रूक्ष स्पर्श रूप परिणत होता है। संस्थान से परिमंडल, वृत्त, त्र्यस्र (त्रिकोण), चतुरस्र (चतुष्कोण) और आयत संस्थान रूप भी परिणत होता है २३।।
जे गंधओ दुब्भि गंध परिणता ते वण्णओ काल वण्ण परिणता वि, णील वण्ण परिणता वि, लोहिय वण्ण परिणता वि, हालिद्द वंण्ण परिणता वि, सुक्किल्ल वण्ण परिणता वि, रसओ तित्त रस परिणता वि, कडुय रस परिणता वि, कसाय रस परिणता वि, अंबिल रस परिणता वि, महुर रस परिणता वि। फासओ कक्खड फास परिणता वि, मउय फास परिणता वि, गरुय फास परिणता वि, लहुय फास परिणता
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