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प्रज्ञापना सूत्र
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(कठोर) स्पर्शवाले, दुःसह और अशुभ नरक हैं। उन नरकों में अशुभ वेदनाएँ हैं। इनमें तमस्तमप्रभा पृथ्वी के पर्याप्त और अपर्याप्त नैरयिकों के स्थान कहे गये हैं। वे उपपात की अपेक्षा लोक के असंख्यातवें भाग में, समुदघात की अपेक्षा लोक के असंख्यातवें भाग में और स्व स्थान की अपेक्षा लोक के असंख्यातवें भाग में है। वहाँ तमस्तमप्रभा पृथ्वी के बहुत से नैरयिक निवास करते हैं। हे आयुष्मन् श्रमणो! वे काले, काली आभा वाले, गंभीर रोमाञ्च वाले, भीम (भयंकर), उत्कट त्रासजनक
और अतीव काले वर्ण के कहे गये हैं। वे नित्य भयभीत, सदैव त्रस्त, नित्य परस्पर एक दूसरे को त्रास पहुँचाए हुए, सदैव उद्विग्न तथा नित्य अत्यंत अशुभ रूप और संबद्ध-निरंतर नरक भय का प्रत्यक्ष अनुभव करते हुए रहते हैं।
अब सातों पथ्वियों की मोटाई (जाडाई) तथा नरकावासों की संख्या जो गाथाओं में बताई गयी है वे इस प्रकार है -
एक लाख अस्सी हजार, एक लाख बत्तीस हजार, एक लाख अठाईस हजार, एक लाख बीस हजार, एक लाख अठारह हजार, एक लाख सोलह हजार और एक लाख आठ हजार योजन क्रमशः सातों नरक पृथ्वियों की मोटाई है॥१॥
एक लाख अठहत्तर हजार, एक लाख तीस हजार, एक लाख छब्बीस हजार, एक लाख अठारह हजार, एक लाख सोलह हजार और छठी पृथ्वी के एक लाख चौदह हजार योजन में तथा सातवीं पृथ्वी के ऊपर नीचे साढ़े बावन साढ़े बावन हजार योजन छोड़ कर शेष तीन हजार योजन में नरकावास हैं।। २॥
तीस लाख, पच्चीस लाख, पन्द्रह लाख, दस लाख, तीन लाख, पांच कम एक लाख और अनुत्तर (दुःखों की अत्यन्त तीव्रता की अपेक्षा) पांच नरकावास क्रमश: जानना चाहिए॥३॥
विवेचन - प्रश्न - नरक किसे कहते हैं?
उत्तर - घोर पापाचरण करने वाले जीव अपने पापों को भोगने के लिये अधोलोक में जिन स्थानों में पैदा होते हैं उन्हें नरक कहते हैं। अथवा मनुष्य और तिर्यंच जहां अपने पापों के अनुसार भयंकर कष्ट उठाते हैं उन अधोलोक स्थित स्थानों को नरक कहते हैं। ' प्रश्न - सात नारकी के नाम और गोत्र कौन से हैं?
उत्तर - १. घम्मा २. वंसा ३. सीला ४. अञ्जना ५. रिट्ठा (अरिष्ठा) ६. मघा और ७. माघवई (माघवती), ये सात नरकों के नाम हैं और १. रत्नप्रभा २. शर्कराप्रभा ३. बालुकाप्रभा ४. पंकप्रभा ५. धूमप्रभा ६. तमःप्रभा और ७. तमस्तमाप्रभा (महातमः प्रभा) ये सात नरकों के गोत्र हैं।
प्रश्न - रत्नप्रभा, शर्कराप्रभा आदि नाम किस कारण से दिये गये हैं ? उत्तर - पहली नरक में रत्नकाण्ड है जिससे वहां रत्नों की प्रभा पड़ती है, इसलिए उसे रत्नप्रभा
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