Book Title: Pragnapana Sutra Part 01
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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दूसरा स्थान पद - भवनवासी देव स्थान
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कहि णं भंते! णागकुमाराणं देवाणं पज्जत्तापज्जत्तगाणं ठाणा पण्णत्ता? कहि णं भंते! णागकुमारा देवा परिवसंति? ___गोयमा! इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए असीउत्तर जोयण सयसहस्स बाहल्लाए उवरि एगं जोयणसहस्सं ओगाहित्ता हिट्ठा चेगं जोयणसहस्सं वजित्ता मज्झे अट्ठहुत्तरे जोयणसयसहस्से एत्थ णं णागकुमाराणं देवाणं पजत्तापज्जत्तगाणं चुलसीइ भवणावाससयसहस्सा भवंतीति मक्खायं। ते णं भवणा बाहिं वट्टा, अंतो चउरंसा जाव पडिरूवा। तत्थ णं णागकुमाराणं देवाणं पज्जत्तापज्जत्तगाणं ठाणा पण्णत्ता। तीसुवि लोगस्स असंखिज्जइभागे।तत्थ णं बहवे णागकुमारा देवा परिवसंति, महिड्डिया, महजुइया, सेसं जहा ओहियाणं जाव विहरंति। धरणभूयाणंदा एत्थ णं दुवे णागकुमारिंदा णागकुमाररायाणो परिवसंति महिड्डिया सेसं जहा ओहियाणं जाव विहरंति॥११०॥
भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन् ! पर्याप्तक और अपर्याप्तक नागकुमार देवों के स्थान कहाँ कहे गये हैं ? हे भगवन् ! नागकुमार देव कहां रहते हैं ?
उत्तर - हे गौतम! एक लाख अस्सी हजार योजन मोटी इस रत्नप्रभा पृथ्वी के ऊपर एक हजार योजन अवगाहन करके और नीचे एक हजार योजन छोड़ कर मध्य के एक लाख अठहत्तर हजार योजन भाग में नागकुमार देवों के चौरासी लाख भवनावास हैं, ऐसा कहा गया है। वे भवन बाहर से गोल और अंदर से चौरस यावत् प्रतिरूप अत्यंत सुन्दर हैं। वहाँ पर्याप्तक और अपर्याप्तक नागकुमार देवों के स्थान कहे गए हैं। उपपात, समुद्घात और स्वस्थान इन तीनों अपेक्षाओं से वे लोक के असंख्यातवें भाग में है। वहाँ बहुत से नागकुमार देव निवास करते हैं। वे महाऋद्धि वाले और महाद्युति वाले हैं। शेष सारा वर्णन सामान्य भवनवासी देवों के संबंध में जैसा कहा है - उसी प्रकार यावत् विचरण करते हैं तक जानना चाहिये। यहाँ धरणेन्द्र और भूतानेन्द्र ये दो नागकुमारेन्द्र और नागकुमारराज रहते हैं। वे महाऋद्धि वाले इत्यादि सारा वर्णन सामान्य भवनवासी देवों के संबंध में कहा है वैसा यावत् विचरण करते हैं तक जानना चाहिये।
कहि णं भंते! दाहिणिल्लाणं णागकुमाराणं देवाणं पजत्तापजत्तगाणं ठाणा पण्णता? कहि णं भंते! दाहिणिल्ला णागकुमारा देवा परिवसंति?,
गोयमा! जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स दाहिणेणं इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए असीउत्तर-जोयण सयसहस्स बाहल्लाए उवरि एगं जोयणसहस्सं ओगाहित्ता हिट्ठा
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