Book Title: Pragnapana Sutra Part 01
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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प्रज्ञापना सूत्र
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आदि चार भेद किये गये हैं। इसका कारण यह है कि आचाराङ्ग सूत्र की नियुक्ति में भाव दिशा के निक्षेप में इस प्रकार के भेद बतलाये गये हैं। जीवों की बहुलता एवं अधिक काल तक जीवों का वनस्पति में रहना आदि अनेक कारण इस प्रकार के भेद करने में रहे हए हो सकते हैं।
प्रश्न - दिशा किसको कहते हैं ? उत्तर - दिशति इति दिक्।अथवा दिश्यते व्यपदिश्यते पूर्वादितया अनया सा दिक् (दिश् )।
अर्थ - संस्कृत में 'दिश्' अतिसर्जने धातु है उससे दिशा शब्द बनता है। जिसका अर्थ है, जो संकेत करे अथवा जिससे पूर्व, पश्चिम आदि रूप से निर्देश किया जाय उसको दिशा कहते हैं। दिशा के दो भेद हैं-द्रव्य दिशा और भाव दिशा।
प्रश्न - भाव दिशा किसे कहते हैं ? उत्तर - जिसमें जीव उत्पन्न होते हैं वह भाव दिशा कहलाती है। प्रश्न - द्रव्य दिशा किसे कहते हैं ?
उत्तर - जिसके द्वारा पदार्थों का विभाजन होने का कथन किया जाय उसको द्रव्य दिशा कहते हैं। उसके नाम, स्थापना, द्रव्य, क्षेत्र, ताप, प्रज्ञापक और भाव ये सात निक्षेप होते हैं। १. किसी व्यक्ति विशेष का "दिशा कुमार" ऐसा नाम रख दिया जाय यह नाम निक्षेप है। २. किसी वस्तु विशेष में अथवा पुस्तक आदि पर दिशा का चित्र बना दिया जाय उसे स्थापना निक्षेप कहते हैं। ३. द्रव्य दिशा - १३ प्रदेशी और १३ प्रदेशावगाढ़ द्रव्य में दसों दिशों का समावेश होता है उसको द्रव्य दिशा कहते हैं। ४. क्षेत्र दिशा - मेरुपर्वत के आठ रुचक प्रदेशों से प्रारम्भ होने वाली दिशा को क्षेत्र दिशा कहते हैं। ५. जिधर सूर्य का उदय होता है उस दिशा को पूर्व दिशा मान कर दूसरी दिशाओं का विभाजन करना ताप दिशा कहलाती है। ६. दिशा की प्रज्ञापना करने वाले पुरुष के मुख की तरफ पूर्व दिशा मानकर दूसरी दिशाओं का विभाजन करना प्रज्ञापक दिशा कहलाती है। प्रज्ञापक की अपेक्षा ही मस्तक से ऊपर ऊर्ध्व दिशा और पैरों के नीचे अधोदिशा कहलाती है। ७. भाव दिशा-पृथ्वीकाय आदि रूप से संसारी जीवों को अठारह भागों में विभक्त करना भाव दिशा कहलाती है।
अठारह द्रव्य दिशा की जगह ताप दिशा, क्षेत्र दिशा, प्रज्ञापक दिशा समझना चाहिए। सूक्ष्म जीव किसी भी दिशा में नियत रूप से कम ज्यादा नहीं होते हैं किन्तु अनियत रूप से कम ज्यादा होते रहते हैं। अतः सूक्ष्म जीवों के अल्प बहुत्व का विचार यहाँ पर नहीं किया गया है। क्योंकि सभी दिशाओं में वे जीव बहुत-बहुत हैं। ___दिशाओं की अपेक्षा से सब से थोड़े जीव पश्चिम दिशा में हैं क्योंकि उस दिशा में बादर वनस्पति की कमी है। यहां बादर जीवों की अपेक्षा से ही अल्पबहुत्व कहा गया है। सूक्ष्म जीवों की अपेक्षा से नहीं क्योंकि सूक्ष्म जीव तो सर्व लोक में व्याप्त हैं और प्रायः सभी स्थानों में समान हैं। बादर जीवों में
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