Book Title: Pragnapana Sutra Part 01
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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तीसरा बहुवक्तव्यता पद - क्षेत्र द्वार
३५५
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तिर्यग्लोक, ३ ऊर्ध्व लोक) में नैरयिक जीव नहीं मिलते हैं। नैरयिक जीव समुद्घात आदि अवस्थाओं में भी स्वस्थान को नहीं छोड़ते हैं। इसलिए उपयुक्त तीन भेद ही बनते हैं, शेष तीन नहीं बनते हैं।
खेत्ताणुवाएणं सव्वत्थोवा तिरिक्खजोणिया उड्डलोयतिरियलोए, अहोलोयतिरियलोए विसेसाहिया, तिरियलोए असंखिज्जगुणा, तेलोक्के असंखिजगुणा, उड्ढलोए असंखिजगुणा, अहोलोए विसेसाहिया।
खेत्ताणुवाएणं सव्वत्थोवाओ तिरिक्खजोणिणीओ उड्डलोए, उड्डलोयतिरियलोए असंखिजगुणाओ, तेलोक्के संखिजगुणाओ, अहोलोयतिरियलोए संखिजगुणाओ, अहोलोए संखिजगुणाओ, तिरियलोए संखिजगुणाओ॥१९८॥
भावार्थ - क्षेत्र की अपेक्षा सबसे थोड़े तिर्यंच ऊर्ध्वलोक-तिर्यक्लोक में हैं, उनसे अधोलोकतिर्यक्लोक में विशेषाधिक हैं, उनसे तिर्यक्लोक में असंख्यात गुणा हैं, उनसे तीन लोक में असंख्यात गुणा हैं, उनसे ऊर्ध्वलोक में असंख्यात गुणा हैं।
क्षेत्र की अपेक्षा सबसे थोड़ी तिर्यंच स्त्रियाँ ऊर्ध्वलोक में हैं, उनसे ऊर्ध्वलोक-तिर्यक्लोक में असंख्यात गुणी हैं, उनसे त्रिलोक में संख्यात गुणी हैं, उनसे अधोलोक तिर्यक्लोक में संख्यात गुणी हैं, उनसे अधोलोक में संख्यात गुणी हैं, उनसे तिर्यक्लोक में संख्यात गुणी हैं।
विवचन - प्रस्तुत सूत्र में तिर्यंच गति की अपेक्षा अल्पबहुत्व कहा गया है। इस अल्पबहुत्व का विचार सामान्य जीव सूत्र के अनुसार समझना चाहिए क्योंकि सामान्य जीवों का अल्पबहुत्व तिर्यंचों की अपेक्षा ही कहा गया है।
_तिर्यंच स्त्री का अल्पबहुत्व इस प्रकार है - क्षेत्र की अपेक्षा तिर्यंच योनिक स्त्रियाँ सबसे थोड़ी ऊर्ध्वलोक में हैं क्योंकि मेरु पर्वत, अंजनगिरि आदि पर्वतों की बावड़ियों में तिर्यंच स्त्रियाँ होती हैं और वह क्षेत्र अल्प होने से तिर्यंच स्त्रियाँ थोड़ी हैं। उनसे ऊर्ध्वलोक तिर्यक्लोक में असंख्यात गुणी हैं क्योंकि सहस्रार देवलोक तक के देव और अन्य जीव भी ऊर्ध्वलोक से तिर्यक्लोक में तिर्यंच पंचेन्द्रिय स्त्री रूप में आयुष्य वेदते हुए उत्पन्न होते हैं। तिर्यक्लोक में रहने वाली तिर्यंच स्त्रियाँ ऊर्ध्वलोक में देव रूप से अन्य काय में उत्पन्न होते समय मारणांतिक समुद्घात से उत्पत्ति स्थान पर अपने अपने आत्म प्रदेश रूपी दंड का विस्तार करते हैं वे भी पूर्वोक्त दो प्रतरों का स्पर्श करते हैं इसलिए वे तिर्यंच स्त्रियाँ असंख्यात गुणी हैं क्योंकि क्षेत्र असंख्यात गुणा हैं, उनसे त्रिलोक में तिर्यंच स्त्रियाँ संख्यात गुणी हैं क्योंकि भवनपति, वाणव्यंतर, नैरयिक तथा अन्य जीव अधोलोक से ऊर्ध्वलोक में तिर्यंच स्त्री रूप से उत्पन्न होते हुए तथा ऊर्ध्वलोक के देव आदि भी अधोलोक में तिर्यंच स्त्री रूप से उत्पन्न होते हुए मारणांतिक समुद्घात कर तीनों लोक का स्पर्श करते हैं अतः वे संख्यात गुणी हैं। उनसे अधोलोक,
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