Book Title: Pragnapana Sutra Part 01
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh

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Page 385
________________ प्रज्ञापना सूत्र ३७२ ********** *********************************** *************** *************** अधोलोक-तिर्यक्लोक में विशेषाधिक हैं, उनसे तिर्यक्लोक में असंख्यात गुणा हैं, उनसे तीन लोक में असंख्यात गुणा हैं, उनसे ऊर्ध्वलोक में असंख्यात गुणा हैं और उनसे अधोलोक में विशेषाधिक हैं। क्षेत्र की अपेक्षा सबसे थोड़े पर्याप्तक वनस्पतिकायिक ऊर्ध्वलोक-तिर्यक्लोक में हैं, उनसे अधोलोक-तिर्यक्लोक में विशेषाधिक हैं, उनसे तिर्यक्लोक में असंख्यात गुणा हैं, उनसे तीन लोक में असंख्यात गुणा हैं, उनसे ऊर्ध्वलोक में असंख्यात गुणा हैं और उनसे अधोलोक में विशेषाधिक हैं। विवेचन - उपरोक्त सूत्र क्रं. २०५ से २०९ तक में क्रमश: पृथ्वीकायिक, अप्कायिक, तेजस्कायिक, वायुकायिक और वनस्पतिकायिक इनके अपर्याप्तक और पर्याप्तक जीवों का क्षेत्र की अपेक्षा अल्पबहुत्व कहा गया है। इसका स्पष्टीकरण एकेन्द्रिय सूत्र के अनुसार समझना चाहिये। खेत्ताणुवाएणं सव्वत्थोवा तसकाइया तेलोक्के, उड्डलोयतिरियलोए संखिजंगुणा, अहोलोयतिरियलोए संखिजगुणा, उड्डलोए संखिजगुणा, अहोलोए संखिजगुणा, तिरियलोए असंखिजगुणा। खेत्ताणुवाएणं सव्वत्थोवा तसकाइया अपजत्तगा तेलोक्के, उड्डलोयतिरियलोए संखिजगुणा, अहोलोयतिरियलोए संखिजगुणा, उड्डलोए संखिजगुणा, अहोलोए संखिजगुणा, तिरियलोए असंखिजगुणा। ___ खेत्ताणुवाएणं सव्वत्थोवा तसकाइया पजत्तगा तेलोक्के, उड्डलोयतिरियलोय असंखिजगुणा, अहोलोयतिरियलोए संखिजगुणा, उड्डलोए संखिज्जगुणा, अहोलोए संखिजगुणा, तिरियलोय असंखिजगुणा॥ २४ दारं।। २१०॥ भावार्थ - क्षेत्र की अपेक्षा सबसे थोड़े त्रस जीव तीन लोक में हैं, उनसे ऊर्ध्वलोक-तिर्यक्लोक में संख्यात गुणा हैं, उनसे अधोलोक-तिर्यक्लोक में संख्यात गुणा हैं, उनसे ऊर्ध्वलोक में संख्यात गुणा हैं, उनसे अधोलोक में संख्यात गुणा हैं और उनसे तिर्यक्लोक में असंख्यात गुणा हैं। क्षेत्र की अपेक्षा सबसे थोड़े अपर्याप्तक त्रस जीव तीन लोक में हैं, उनसे ऊर्ध्वलोक-तिर्यक्लोक में संख्यात गुणा हैं, उनसे अधोलोक-तिर्यक्लोक में संख्यात गुणा हैं, उनसे ऊर्ध्वलोक में संख्यात गुणा हैं, उनसे अधोलोक में संख्यात गुणा हैं और उनसे तिर्यक्लोक में असंख्यात गुणा हैं। क्षेत्र की अपेक्षा सबसे थोड़े पर्याप्तक त्रस जीव तीनों लोक में हैं, उनसे ऊर्ध्वलोक-तिर्यक् लोक में संख्यात गुणा है, उनसे अधोलोक-तिर्यक्लोक में संख्यात गुणा है, उनसे ऊर्ध्वलोक में संख्यात गुणा है। उनसे अधोलोक में संख्यात गुणा हैं और उनसे तिर्यक्लोक में असंख्यात गुणा हैं। विवेचन - प्रस्तुत सूत्र में क्षेत्र की अपेक्षा समुच्चय त्रस, त्रस के अपर्याप्तक और त्रस के पर्याप्तक जीवों का अल्पबहुत्व कहा गया है। त्रस एवं त्रस के अपर्याप्तक का अल्पबहुत्व समुच्चय Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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