Book Title: Pragnapana Sutra Part 01
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh

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Page 413
________________ ४०० . प्रज्ञापना सूत्र ********************** ************** ***************************** . (९७) सयोगियों की अपेक्षा संसारी जीव विशेषाधिक हैं, क्योंकि संसारी जीवों में अयोगीकेवली भी हैं। (९८) संसारी जीवों की अपेक्षा सर्वजीव विशेषाधिक हैं, क्योंकि सर्वजीवों में सिद्धों का भी समावेश हो जाता है। विशेष ज्ञातव्य - यह महादण्डक की अल्पबहुत्व सर्व जीवों की अपेक्षा बताई गई है। अत: इस अल्प बहुत्व में व्यवहार राशि और अव्यवहार राशि इन दोनों राशियों के जीवों की अल्पबहुत्व कही गई है। क्योंकि व्यवहार राशि के जीव तो सिद्ध भगवान् से भी अनन्तवें भाग जितने ही होते हैं यह काय स्थिति पद से सुस्पष्ट हो जाता है। जबकि यहाँ पर तो बादर वनस्पतिकायिक जीव भी सिद्धों से अनन्तगुणे बताये हैं। अत: इस अल्पबहुत्व के चार बोलों (७७, ७९, ८२, ८४) में दोनों राशियों के जीव सम्मिलित है। ७६ वें बोल में सिद्ध भगवान् होने से उनमें कोई भी राशि नहीं होती है। इनके सिवाय प्रथम बोल से ७५ वें बोल तक चार बोलों (५४ ६०, ७२, ७३) को छोड़ कर मात्र व्यवहार राशि के जीव ही होते हैं। शेष सभी बोलों में दोनों राशियों के जीव शामिल गिने हैं। ॥सत्ताईसवां महादण्डक द्वार समाप्त॥ ॥ प्रज्ञापना सूत्र का तीसरा बहुवक्तव्यता पद समाप्त॥ ॥भाग-१ समाप्त॥ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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