Book Title: Pragnapana Sutra Part 01
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh

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Page 397
________________ ३८४ प्रज्ञापना सूत्र अपेक्षा है, उनसे संख्यांत प्रदेशावगाढ़ पुद्गल प्रदेश की अपेक्षा संख्यात गुणा हैं, उनसे असंख्यात प्रदेशावगाढ पुद्गल प्रदेश की अपेक्षा असंख्यात गुणा हैं। द्रव्य और प्रदेश की अपेक्षा - सबसे थोड़े एक प्रदेशावगाढ़ पुद्गल द्रव्य एवं प्रदेश की अपेक्षा है, उनसे संख्यात प्रदेशावगाढ़ पुद्गल द्रव्य की अपेक्षा संख्यात गुणा हैं और प्रदेशों की अपेक्षा संख्यात गुणा हैं, उनसे असंख्यात प्रदेशावगाढ़ पुद्गल द्रव्य की अपेक्षा असंख्यात गुणा हैं और वे प्रदेश की अपेक्षा असंख्यात गुणा हैं। विशेष ज्ञातव्य - यहाँ पर क्षेत्र (आकाश प्रदेश) की मुख्यता से पुद्गलों की अल्पबहुत्व कही गई है अर्थात् क्षेत्रावगढ़ पुद्गलों की अल्पबहुत्व है। टीकाकार तो 'एक प्रदेशावगाढ़ परमाणु से लेकर अनन्त प्रदेशी अनन्त स्कन्धों को विवक्षा से एक ही मानते हैं।' परन्तु आगमकार तो उन्हें एक द्रव्य नहीं मानकर जितने स्कन्ध हैं उतने ही द्रव्य मानते हैं क्षेत्र की मुख्यता होने से उन अनन्त द्रव्यों के प्रदेश तो वे जितने-जितने आकाश प्रदेशावगाढ़ हो उतने - उतने ही माने जाते हैं जैसे दो प्रदेशावगाढ़ दो प्रदेशी स्कन्ध से अनन्त प्रदेशी स्कन्ध है उनके प्रदेश दो तीन यावत् अनन्त जितने नहीं मानकर प्रत्येक स्कन्ध के दो-दो प्रदेश ही माने जाते हैं क्योंकि प्रत्येक स्कन्ध दो आकाश प्रदेशों पर रहा हुआ है। इसी तरह तीन प्रदेशावगाढ़ से लेकर असंख्यात प्रदेशावगाढ़ के लिए भी समझना चाहिये। Jain Education International ************** एएसि णं भंते! एगसमयठियाणं संखिज्जसमयठिड्याणं असंखिज्जसमयठिड्याणं पुग्गलाणं दव्वट्टयाए पएसट्टयाए दव्वट्टपएसट्टयाए कयरे कयरेहिंतो अप्पा वा बहुया वातुल्ला वा विसेसाहिया वा ? गोयमा! सव्वत्थोवा एगसमयठिड्या पुग्गला दव्वट्टयाए, संखिज्जसमयठिड्या पुग्गला दव्वट्टयाए संखिज्जगुणा, असंखिज्जसमयठिड्या पुग्गला दव्वट्टयाए असंखिज्जगुणा । पएसट्टयाए - सव्वत्थोवा एगसमयठिझ्या पुग्गला पएसट्टयाए, संखिज्जसमयठिड्या, पुग्गला पएसट्टयाए संखिज्जगुणा, असंखिज्जसमयठिड्या पुग्गला परसट्टयाए असंखिज्जगुणा । दव्वट्ठपएसट्टयाए - सव्वत्थोवा एगसमयठिझ्या पुग्गला दव्वट्ठपएसट्टयाए, संखिज्जसमयठिझ्या पुग्गला दव्वट्टयाए संखिज्जगुणा, ते चेव पएसट्टयाए संखिज्जगुणा । असंखिज्जसमयठिड्या पुग्गला दव्वट्टयाए असंखिज्जगुणा, ते चेव पएसट्टयाए असंखिज्जगुणा ॥ २१५ ॥ भावार्थ- प्रश्न - हे भगवन् ! एक समय की स्थिति वाले, संख्यात समय की स्थिति वाले और असंख्यात समय की स्थिति वाले पुद्गलों में कौन किनसे अल्प, बहुत, तुल्य या विशेषाधिक हैं ? उत्तर - हे गौतम! एक समय की स्थिति वाले पुद्गल द्रव्य की अपेक्षा सबसे थोड़े हैं, उनसे For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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