Book Title: Pragnapana Sutra Part 01
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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प्रज्ञापना सूत्र
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भावार्थ - क्षेत्र की अपेक्षा सबसे थोड़े द्रव्य तीन लोक में (त्रिलोकवर्ती) हैं, उनसे ऊर्ध्वलोकतिर्यक्लोक में अनन्त गुणा हैं, उनसे अधोलोक-तिर्यक्लोक में विशेषाधिक हैं, उनसे ऊर्ध्वलोक में असंख्यात गुणा हैं, उनसे अधोलोक में अनन्त गुणा हैं और उनसे तिर्यक्लोक में संख्यात गुणा हैं।
विवेचन - प्रस्तुत सूत्र में क्षेत्र की अपेक्षा द्रव्य का अल्पबहुत्व कहा गया हैं - १. सबसे थोड़े त्रिलोक में हैं क्योंकि धर्मास्तिकाय, अधर्मास्तिकाय, आकाशास्तिकाय, पुद्गलास्तिकाय का महास्कन्ध
और जीवास्तिकाय में मारणान्तिक समुद्घात द्वारा समुद्घात करने वाले जीव तीनों लोक का स्पर्श करते हैं अतः ये सबसे थोड़े हैं। २. उनसे ऊर्ध्वलोक-तिर्यक्लोक में अनंत गुणा हैं क्योंकि अनन्त पुद्गल द्रव्य और अनन्त जीव द्रव्य ऊर्ध्वलोक तिर्यक्लोक के दोनों प्रतर का स्पर्श करते हैं अंतः अनन्त गुणा हैं। ३. उनसे अधोलोक-तिर्यक्लोक में विशेषाधिक हैं क्योंकि ऊर्ध्वलोक तिर्यक्लोक की अपेक्षा अधोलोक- तिर्यक्लोक का क्षेत्र विशेषाधिक होने से इन दोनों प्रतर में द्रव्य भी विशेषाधिक हैं। ४. उनसे ऊर्ध्वलोक में असंख्यात गुणा हैं क्योंकि ऊर्ध्वलोक का क्षेत्र असंख्यात गुणा है अतः यहाँ द्रव्य भी असंख्यात गुणा हैं। ५. उनसे अधोलोक में अनंत गुणा हैं क्योंकि अधोलौकिक ग्रामों में काल है। परमाणु, संख्यात प्रदेशी, असंख्यात प्रदेशी, अनन्त प्रदेशी स्कन्ध के द्रव्य, क्षेत्र, काल, भाव और पर्याय के साथ काल का सम्बन्ध होने से प्रत्येक परमाणु आदि द्रव्य की अपेक्षा अनन्त काल है अत: अधोलोक में अनन्त गुणा हैं। ६. उनसे तिर्यक्लोक में संख्यात गुणा हैं क्योंकि,तिर्यक्लोक में मनुष्य लोक है जहाँ काल है। मनुष्य लोक में अधोलौकिक ग्राम प्रमाण संख्यात खण्ड हैं अतः तिर्यक्लोक में संख्यात गुणा हैं।
विशेष ज्ञातव्य - यद्यपि त्रिलोक में अत्यधिक जीव होते हैं तथापि पुद्गलों एवं काल द्रव्य के अनन्तवें भाग जितने ही हैं। अतः क्षेत्रानुपात से द्रव्यों की अल्पबहुत्व में ऐसे त्रिलोक व्यापी एवं स्पर्शी द्रव्य सबसे थोड़े ही होते हैं। क्योंकि समुद्घात जीवों से भी त्रिलोक व्यापी अन्य द्रव्य बहुत कम है। जबकि पुद्गल द्रव्य तो एक आकाश प्रदेश पर भी सब जीवों से अनन्तगुणा रह जाते हैं। अतः त्रिलोक में सबसे थोड़े बताये हैं। ____ अधोलोक में तथा तिर्यग्लोक में काल द्रव्य होने पर भी 'अधोलोक तिर्यग्लोक' रूप दो प्रतरों के क्षेत्र पर काल द्रव्य नहीं होता है। क्योंकि कालाणु एक ही होता है। (धर्मास्तिकायादि अन्य द्रव्यों की तरह उसके प्रदेश नहीं होते हैं। वह तो अप्रदेशी ही होता है अर्थात् वर्तमान का एक समय ही काल द्रव्य है) अतः अधोलोक के प्रदेशों पर रहे जीवादि द्रव्यों पर वर्तने वाला काल द्रव्य 'अधोलोक' में गिना जाता है तथा तिर्यग्लोक के प्रदेशों पर रहे हुए जीवादि द्रव्यों पर वर्तने वाला काल द्रव्य ‘तिर्यक् लोक' में गिना जाता है। अर्थात् एक ही काल द्रव्य इन दोनों प्रतरों पर नहीं वर्तता है। अतः इन दो प्रतरों के क्षेत्र में कालद्रव्य नहीं माना गया है। काल द्रव्य - जीवादि द्रव्यों पर, उनके प्रदेशों पर तथा
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