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तीसरा बहुवक्तव्यता पद - क्षेत्र द्वार
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तिर्यक्लोक में असंख्यात गुणी हैं, उनसे तीन लोक में संख्यात गुणी हैं, उनसे अधोलोक-तिर्यक्लोक में असंख्यात गुणी हैं, उनसे तिर्यक्लोक में असंख्यात गुणी हैं और उनसे अधोलोक में असंख्यात गुणी हैं।
विवेचन - प्रस्तुत सूत्र में भवनपति देवों का और देवियों का क्षेत्र की अपेक्षा अल्पबहुत्व कहा ' गया है - भवनपति देव-देवी सबसे थोड़े ऊवलोक में हैं क्योंकि भवनपति देव-देवियाँ पहले की मित्रता के कारण सौधर्मादि देवलोक में जाते हैं, तीर्थंकरों के जन्म महोत्सव पर मेरुपर्वत पर जाते हैं, क्रीड़ा निमित्त भी ये मेरु पर्वत पर जाते हैं, अंजनगिरि दधिमुख पर्वत पर भी जाते हैं फिर भी ये थोड़े हैं। उनसे ऊर्ध्वलोक तिर्यक्लोक में असंख्यात गुणा हैं क्योंकि तिर्यक्लोक में रहे हुए भवनपति देव और देवी वैक्रिय समुद्घात कर ऊर्ध्वलोक और तिर्यक्लोक के दोनों प्रतरों का स्पर्श करते हैं। तिर्यक्लोक में रहे हुए मारणान्तिक समुद्घात कर ऊर्ध्वलोक में बादर पृथ्वीकायादि में उत्पन्न होते हुए भी ये उक्त; दोनों प्रतरों का स्पर्श करते हैं। वैक्रिय समुद्धात करते हुए तथा क्रीड़ा स्थान पर जाते आते दोनों प्रतरों का स्पर्श करते हैं। उनसे त्रिलोक में संख्यात गुणा हैं क्योंकि ऊर्ध्वलोक में रहे हुए पंचेन्द्रिय तिर्यंच भवनपति में उत्पन्न होते हुए उपपात के प्रथम समय में तीनों लोक का स्पर्श करते हैं। भवनपति देव भी मारणान्तिक समुद्घात करते हुए तीनों लोक का स्पर्श करते हैं अत: संख्यात गुणा हैं। उनसे अधोलोक तिर्यक्लोक में संख्यात गुणा हैं क्योंकि तिर्यक्लोक में गमनागमन करते हुए तथा समुद्घात करते हुए
पति देव अधोलोक और तिर्यकलोक के दोनों प्रतरों का स्पर्श करते हैं। तिर्यकलोक के तिर्यंच और मनुष्य मर कर भवनपति देव में उत्पन्न होते हुए इन दोनों प्रतरों का स्पर्श करते हैं अतः असंख्यात गुणा हैं, उनसे तिर्यक्लोक में असंख्यात गुणा है क्योंकि समवसरण में वंदना निमित्त तथा तीर्थंकर के पंच कल्याणक के अवसर पर भवनपति देव तिर्यक्लोक में आते हैं तथा रमणीय द्वीपों में भवनपति देव क्रीड़ा निमित्त आते हैं तथा वहीं पर चिर काल तक रहते हैं अतः असंख्यात गुणा है। उनसे अधोलोक में असंख्यात गुणा हैं क्योंकि अधोलोक भवनपति देवों का स्वस्थान हैं अत: असंख्यात गुणा है।
खेत्ताणुवाएणं सव्वत्थोवा वाणमंतरा देवा उड्डलोए, उड्डलोयतिरियलोए असंखिजगुणा, तेलोक्के संखिजगुणा, अहोलोयतिरियलोए असंखिजगुणा, अहोलोए असंखिजगुणा, तिरियलोए संखिजगुणा। . खेत्ताणुवाएणं सव्वत्थोवाओ वाणमंतरीओ देवीओ उड्डलोए, उड्डलोयतिरियलोए असंखिजगुणाओ, तेलोक्के संखिजगुणाओ, अहोलोयतिरियलोए असंखिजगुणाओ, अहोलोए संखिजगुणाओ, तिरियलोए संखिजगुणाओ।
भावार्थ - क्षेत्र की अपेक्षा सबसे थोड़े वाणव्यंतर ऊर्ध्वलोक में हैं, उनसे ऊर्ध्वलोक तिर्यक्लोक
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