Book Title: Pragnapana Sutra Part 01
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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तीसरा बहुवक्तव्यता पद - क्षेत्र द्वार
३६१
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भावार्थ - क्षेत्र की अपेक्षा सबसे थोड़े ज्योतिषी देव ऊर्ध्वलोक में हैं, उनसे ऊर्ध्वलोक तिर्यक्लोक में असंख्यात गुणा हैं, उनसे तीन लोक में संख्यात गुणा हैं, उनसे अधोलोक-तिर्यक्लोक में असंख्यात गुणा हैं, उनसे अधोलोक में संख्यात गुणा हैं, उनसे तिर्यक्लोक में असंख्यात गुणा हैं।
क्षेत्र की अपेक्षा सबसे थोड़ी ज्योतिषी देवियाँ ऊर्ध्वलोक में है, उनसे ऊर्ध्वलोक-तिर्यक्लोक में असंख्यात गुणी हैं, उनसे तीन लोक में संख्यात गुणी हैं, उनसे अधोलोक-तिर्यक्लोक में असंख्यात गुणी हैं, उनसे अधोलोक में संख्यात गुणी हैं, उनसे तिर्यक्लोक में असंख्यात गुणी हैं।
विवेचन - प्रस्तुत सूत्र में ज्योतिषी देव और देवियों का क्षेत्र की अपेक्षा अल्पबहुत्व कहा गया है जो इस प्रकार है - सबसे थोड़े ज्योतिषी देव और देवियाँ ऊर्ध्वलोक में हैं क्योंकि कुछ ज्योतिषी देव मेरु पर्वत पर तीर्थंकर भगवान् के जन्म महोत्सव पर जाते हैं तथा कई क्रीड़ा निमित जाते हैं अत: सबसे थोड़े हैं। उनसे ऊर्ध्वलोक तिर्यक्लोक में असंख्यात गुणा हैं क्योंकि ऊर्ध्वलोक जाते आते हुए इन दोनों प्रतरों का स्पर्श करते हैं। दोनों प्रतरों का स्पर्श करने वाले ये ज्योतिषी देव देवी पूर्वोक्त से असंख्यात गुणा है। उनसे त्रिलोक में संख्यात गुणा हैं क्योंकि मारणांतिक समुद्घात कर ज्योतिषी देव और देवी तीन लोक का स्पर्श करते हैं जो स्वभावतः बहुत होते हैं अत: संख्यात गुणा हैं। उनसे अधोलोक तिर्यक्लोक में असंख्यात गुणा हैं क्योंकि समवसरणादि निमित्त व क्रीड़ा निमित्त अधोलोक के ग्रामों में जाते हुए ज्योतिषी देव अधोलोक-तिर्यक्लोक के दोनों प्रतरों का स्पर्श करते हैं। अधोलोक से ज्योतिषियों में उत्पन्न होने वाले जीव भी इन दोनों प्रतरों का स्पर्श करते हैं अतः असंख्यात गुणा हैं। उनसे अधोलोक में संख्यात गुणा हैं क्योंकि अधोलोक में क्रीडा निमित ज्योतिषी देव और देवी दीर्घकाल तक रहते हैं तथा अधोलोक के गांवों में समवसरण आदि में रहते हैं इसलिये संख्यात गुणा हैं, उनसे तिर्यक्लोक में असंख्यात गुणा हैं। क्योंकि तिर्यक्लोक ज्योतिषी देवों का अपना स्वस्थान है अतः वहां असंख्यात गुणा. हैं। ___ खेत्ताणुवाएणं सव्वत्थोवा वेमाणिया देवा उड्डलोयतिरियलोए, तेलोक्के संखिजगुणा, अहोलोयतिरियलोए संखिजगुणा, अहोलोए संखिजगुणा, तिरियलोए संखिजगुणा, उड्डलोए असंखिजगुणा। - खेत्ताणुवाएणं सव्वत्थोवाओ वेमाणिणीओ देवीओ उड्डलोयतिरियलोए, तेलोक्के संखिज्जगुणाओ, अहोलोयतिरियलोए संखिजगुणाओ, अहोलोए संखिजगुणाओ, तिरियलोए संखिजगुणाओ, उड्डलोए असंखिजगुणाओ॥२०१॥
भावार्थ - क्षेत्र की अपेक्षा सबसे थोडे वैमानिक देव ऊर्ध्वलोक-तिर्यक्लोक में हैं, उनसे तीन लोक में संख्यात गुणा हैं, उनसे अधोलोक तिर्यक्लोक में संख्यात गुणा हैं, उनसे अधोलोक में संख्यात गुणा हैं, उनसे तिर्यक्लोक में संख्यात गुणा हैं, उनसे ऊर्ध्वलोक में असंख्यात गुणा हैं।
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