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तीसरा बहुवक्तव्यता पद - क्षेत्र द्वार
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के पर्याप्ता और अपर्याप्ता तो असंख्यात गुणा बताये हैं परन्तु पर्याप्त पंचेन्द्रिय जीव संख्यात गुणा ही बताये है क्योंकि बेइन्द्रिय तो बेइन्द्रिय के साथ संख्याता भव करने से समुद्घात वाले ज्यादा मिलते हैं परन्तु पंचेन्द्रिय पर्याप्ता तो सात आठ भव ही करते है अतः मारणांतिक समुद्घात करने वाले कम मिलने से संख्यात गुणा ही होते हैं।
खेत्ताणुवाएणं सव्वत्थोवा पंचिंदिया तेलोक्के, उड्डलोयतिरियलोए संखिजगुणा, अहोलोयतिरियलोए संखिजगुणा, उड्डलोए संखेजगुणा, अहोलोए संखिजगुणा, तिरियलोए असंखिज्जगुणा।। । खेत्ताणुवाएणं सव्वत्थोवा पंचिंदिया अपज्जत्तगा तेलोक्के, उड्डलोयतिरियलोए संखिजगुणा, अहोलोयतिरियलोए संखिजगुणा, उड्डलोए संखिजगुणा, अहोलोए संखिजगुणा, तिरियलोए असंखिजगुणा। __खेत्ताणुवाएणं सव्वत्थोवा पंचिंदिया पज्जत्तगा उड्डलोए, उड्डलोयतिरियलोए असंखिजगुणा, तेलोक्के संखिजगुणा, अहोलोयतिरियलोए संखिजगुणा, अहोलोए संखिजगुणा, तिरियलोए असंखिजगुणा॥२०४॥
भावार्थ - क्षेत्र की अपेक्षा सबसे थोड़े पंचेन्द्रिय जीव तीन लोक में हैं, उनसे ऊर्ध्वलोकतिर्यक्लोक में संख्यात गुणां हैं, उनसे अधोलोक-तिर्यक्लोक में संख्यात गुणा हैं, उनसे ऊर्ध्वलोक में संख्यात गुणा हैं, उनसे अधोलोक में संख्यात गुणा हैं और उनसे तिर्यक्लोक में असंख्यात गुणा हैं। ___ क्षेत्र की अपेक्षा सबसे थोड़े अपर्याप्तक पंचेन्द्रिय जीव तीन लोक में हैं, उनसे ऊर्ध्वलोकतिर्यक्लोक में संख्यात गुणा हैं, उनसे अधोलोक-तिर्यक्लोक में संख्यात गुणा हैं, उनसे ऊर्ध्वलोक में संख्यात गुणा हैं, उनसे अधोलोक में संख्यात गुणा हैं और उनसे तिर्यक्लोक में असंख्यात गुणा हैं।
क्षेत्र की अपेक्षा सबसे थोड़े पर्याप्तक पंचेन्द्रिय ऊर्ध्वलोक में हैं, उनसे ऊर्ध्वलोक-तिर्यक्लोक में असंख्यात गुणा हैं, उनसे तीन लोक में संख्यात गुणा हैं, उनसे अधोलोक-तिर्यक्लोक में संख्यात गुणा हैं, उनसे अधोलोक में संख्यात गुणा हैं और उनसे तिर्यक्लोक में असंख्यात गुणा हैं।
विवेचन - प्रस्तुत सूत्र में क्षेत्रानुसार पंचेन्द्रिय जीवों का अल्पबहुत्व कहा गया है - समुच्चय पंचेन्द्रिय और पंचेन्द्रिय के अपर्याप्तक सबसे थोड़े तीन लोक में हैं क्योंकि अधोलोक से ऊर्ध्वलोक में
और ऊर्ध्वलोक से अधोलोक में पंचेन्द्रिय रूप से उत्पन्न होने वाले जीव मारणान्तिक समुद्घात कर उत्पत्ति प्रदेश पर्यन्त आत्म-प्रदेशों को फैला देते हैं और तीनों लोकों का स्पर्श करते हैं। वे सबसे थोड़े हैं। उनसे ऊर्ध्वलोक-तिर्यक्लोक में संख्यात गुणा हैं क्योंकि ऊर्ध्वलोक से तिर्यक्लोक में और तिर्यक्लोक से ऊर्ध्वलोक में उत्पन्न होने वाले ऊर्ध्वलोक और तिर्यक्लोक के दोनों प्रतरों का स्पर्श
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