Book Title: Pragnapana Sutra Part 01
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh

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Page 371
________________ ३५८ प्रज्ञापना सूत्र ************************************************************* *********************** 'विवेचन - प्रस्तुत सूत्र में क्षेत्र की अपेक्षा समुच्चय देव और देवियों का अल्पबहुत्व कहा गया है - सबसे थोड़े देव ऊर्ध्वलोक में हैं क्योंकि वैमानिक देव सबसे कम हैं। उनसे ऊर्ध्वलोकतिर्यक्लोक में असंख्यात गुणा हैं क्योंकि ये दोनों प्रतर ज्योतिषी देवों के समीप हैं इसलिए उनके स्वस्थान हैं तथा भवनपति, वाणव्यंतर और ज्योतिषी देव मेरु पर्वत आदि पर जाते हैं, सौधर्म आदि कल्पों के देव स्व स्थान में आते जाते हैं और जो सौधर्म आदि कल्पों में देव रूप से उत्पन्न होने की योग्यता वाले हैं और देवाय का वेदन कर रहे होते हैं वे अपने उत्पत्ति स्थान पर जाते हैं तो पर्वोक्त दोनों प्रतरों का स्पर्श करते हैं अत: ऊर्ध्वलोक से ऊर्ध्वलोक तिर्यक्लोक में देव असंख्यात गुंणा हैं। उनसे तीन लोक का स्पर्श करने वाले देव संख्यात गुणा हैं क्योंकि भवनपति , वाणव्यंतर, ज्योतिषी, वैमानिक देव और तथारूप प्रयत्न विशेष से जब वैक्रिय समुद्घात करते हैं तब तीनों लोकों का स्पर्श करते हैं तथा मारणांतिक समुद्घात के द्वारा एवं उपपात के प्रथम समय में भी तीनों लोकों का स्पर्श करते हैं। अतः ऊर्ध्वलोक तिर्यक्लोक से त्रिलोक में संख्यात गुणा देव कहे गये हैं। उनसे अधोलोक . तिर्यक्लोक में संख्यात गुणा है क्योंकि ये दोनों प्रतर भवनपति और वाणव्यंतर देवों के नजदीक होने से स्वस्थान हैं तथा बहुत से भवनपति देव अपने भवन में रहते हुए भी तिर्यक्लोक में गमनागमन करते हैं, मृत्यु के समय, वैक्रिय समुदघात करते हुए अथवा तिर्यकलोक में रहने वाले तिर्यंच पंचेन्द्रिय, मनुष्य, भवनपति में उत्पन्न होते हुए और भवनपति की आयु का वेदन करते हुए पूर्वोक्त दोनों प्रतरों का स्पर्श करते हैं और वे बहुत है अतः संख्यात गुणा कहे गये हैं। उनसे अधोलोक में संख्यात गुणा हैं, क्योंकि वह भवनपति देवों का स्वस्थान है, उनसे तिर्यक् लोक में संख्यात गुणा है क्योंकि तिर्यक्लोक ज्योतिषी और वाणव्यंतर देवों का स्वस्थान हैं। देवों की तरह ही देवियों का अल्पबहुत्व समझन लेना चाहिये। खेत्ताणुवाएणं सव्वत्थोवा भवणवासी देवा उड्डलोए, उड्डलोयतिरियलोए असंखिजगुणा, तेलोक्के संखिजगुणा, अहोलोयतिरियलोए असंखिजगुणा, तिरियलोए असंखिजगुणा, अहोलोए असंखिजगुणा।। खेत्ताणुवाएणं सव्वत्थोवाओ भवणवासिणीओ देवीओ उड्वलोए, उड्डूलोयतिरियलोए असंखिजगुणाओ, तेलोक्के संखिजगुणाओ, अहोलोयतिरियलोए असंखिजगुणाओ, तिरियलोए असंखिजगुणाओ, अहोलोए असंखिजगुणाओ। भावार्थ - क्षेत्र की अपेक्षा सबसे थोड़े भवनवासी देव ऊर्ध्वलोक में है। उनसे ऊर्ध्वलोकतिर्यक्लोक में असंख्यात गुणा हैं, उनसे तीन लोक में संख्यात गुणा हैं, उनसे अधोलोक-तिर्यक्लोक में असंख्यात गुणा, उनसे तिर्यक्लोक में असंख्यात गुणा, उनसे अधोलोक में असंख्यात गुणा हैं। क्षेत्र की अपेक्षा से सबसे थोड़ी भवनवासिनी देवियाँ ऊर्ध्वलोक में हैं, उनसे ऊर्ध्वलोक Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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