Book Title: Pragnapana Sutra Part 01
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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प्रज्ञापना सूत्र
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होने से उन पर निवास करने वाले वाणव्यन्तर देव भी अधिक मिलते हैं। ऐसा बताया जाता है। पूर्व महाविदेह से पश्चिम महाविदेह का क्षेत्र अधिक है क्योंकि सलिलावती विजय और वप्रा विजय एक हजार योजन उंडी होने से क्षेत्र बढ़ा है। अन्यथा दोनों समान हैं। पूर्व में धरती कठोर होने से व्यन्तर नगर नहीं हैं। पश्चिम में विशेषाधिक-वृक्ष अधिक होने से उन पर वाणव्यन्तर देव रहते हैं। उत्तर में विशेषाधिक व्यन्तर नगर अधिक होने से। दक्षिण में विशेषाधिक-इस दिशा में बहुत अधिक व्यन्तर नगर होने से व्यन्तर देव अधिक हैं।
दिसाणुवाएणं सव्वत्थोवा जोइसिया देवा पुरच्छिम पच्चत्थिमेणं, दाहिणेणं विसेसाहिया, उत्तरेणं विसेसाहिया।
___ भावार्थ - दिशाओं की अपेक्षा से सबसे थोड़े ज्योतिषी देव पूर्व और पश्चिम दिशा में हैं उनसे दक्षिण दिशा में विशेषाधिक हैं उनसे उत्तर दिशा में विशेषाधिक हैं।
विवेचन - सबसे थोड़े ज्योतिषी देव पूर्व और पश्चिम दिशा में हैं क्योंकि वहां चन्द्र सूर्य के उद्यान जैसे द्वीपों में थोड़े ही ज्योतिषी देव हैं। उनसे दक्षिण दिशा में विशेषाधिक हैं क्योंकि वहां उनके विमान अधिक हैं और वहाँ कृष्णपाक्षिक जीव भी उत्पन्न होते हैं। उनसे उत्तर दिशा में विशेषाधिक हैं क्योंकि उत्तर में मानस सरोवर होने से वह ज्योतिषी देवों का क्रीड़ा स्थल है और क्रीड़ा प्रेमी बहुत से ज्योतिषी देव वहां सदैव रहते हैं। इसके अलावा मानस सरोवर में जो मत्स्यादि जलचर हैं उन्हें नजदीक में रहे विमानों को देख कर जातिस्मरण ज्ञान होता है जिससे वे कुछ व्रत अंगीकार करके, अनशन आदि करके नियाणा पूर्वक ज्योतिषी में उत्पन्न होते हैं इसलिये दक्षिण दिशा की अपेक्षा उत्तर दिशा में ज्योतिषी देव विशेषाधिक कहे गये हैं।
पूर्व और पश्चिम दिशा में ज्योतिषी देव कम हैं क्योंकि वहाँ पर ज्योतिषी देवों के विमान कम हैं। चन्द्र और सूर्य की पंक्ति चारों दिशाओं में तुल्य होते हुए भी उनके परिवार भूत तारा आदि के विमान चारों दिशाओं में तुल्य नहीं हैं। जैसे आज भी चारों दिशाओं में तारा माडल समान नहीं देखे जाते हैं। उत्तर दिशा में स्थित आकाशगंगा में बहुत अधिक तारे दिखाई देते हैं, ऐसी स्थिति अढ़ाई द्वीप के बाहर भी हो सकती है। तथा तारा विमानों का अन्तर जघन्य पांच सौ धनुष और उत्कृष्ट दो कोस का बताया गया है। अतः पूर्व और पश्चिम के तारा विमानों में अधिक अन्तर तथा उत्तर और दक्षिण दिशा के विमानों का अन्तर कम (जघन्य) हो सकता है। अतः पूर्व और पश्चिम में कम विमान हो सकते हैं।
पूर्व और पश्चिम दिशा में चन्द्र और सूर्य के द्वीप और राजधानी है। फिर भी उत्तर दिशा में ज्योतिषी देव अधिक बतलाये हैं इसका कारण यह है कि सभी विमानों में प्रकीर्णक (प्रजास्थानीय) देव अधिक उत्पन्न होते हैं। अतः इन दिशाओं में देवों की संकीर्णता अधिक है। तथा मानस सरोवर में
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