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प्रज्ञापना सूत्र
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उत्तर - हे गौतम! सबसे थोड़े जीव संयत हैं, उनसे संयतासंयत असंख्यातगुणा हैं, उनसे नो संयत-नोअसंयत-नोसंयतासंयत अनंत गुणा हैं और उनसे भी असंयत अनंत गुणा हैं।
विवेचन - प्रश्न - हे भगवन् ! संयत (संजय) किसको कहते हैं ?
उत्तर - "सम् एकीभावेन यतः संयतः। संयच्छति स्म सर्वसावद्ययोगेभ्यः सम्यग् उपरमते स्म इति संयतः।
संस्कृत में "यम् उपरमे" धातु है। जिसका अर्थ होता है निवृत्त होना। इस धातु से संयत शब्द बनता है। जिसका प्राकृत में संजय शब्द बन जाता है। इसकी व्युत्पत्ति ऊपर दे दी गयी है जिसका अर्थ होता है कि जो सर्व सावद्य योगों से अर्थात् अठारह ही पापों से निवृत्त हो जाता है उसे संयत कहते हैं।
प्रस्तुत सूत्र में संयत, असंयत, संयतासंयत और नो संयत-नो असंयत-नो संयता-संयत की अपेक्षा से अल्पबहुत्व का निरूपण किया गया है। सबसे थोड़े संयत-सर्व विरति वाले जीव हैं, क्योंकि वे उत्कृष्ट हजार करोड़ पृथक्त्व प्रमाण होते हैं कहा भी है - 'कोडिसहस्सपुहुत्तं मणुयलोए संजयाणं" - मनुष्य लोक में संयत कोटि सहस्र पृथक्त्व प्रमाण होते हैं। उनसे संयतासंयत-देश विरति वाले असंख्यात गुणा हैं क्योंकि असंख्यात तिर्यंच पंचेन्द्रिय जीवों में भी देश विरति संभव है। उनसे नो संयत-नो असंयत-नो संयतासंयत अनन्त गुणा हैं क्योंकि सिद्ध भगवन्तत अनन्त हैं। उनसे असंयतविरति रहित जीव अनन्त हैं क्योंकि वनस्पतिकायिक जीव सिद्धों से भी अनन्त गुणा हैं।
॥ बारहवां संयत द्वार समाप्त॥
१३. तेरहवां उपयोग द्वार एएसिणं भंते! जीवाणं सागारोवउत्ताणं अणागारोवउत्ताणं च कयरे कयरहितो अप्पा वा बहुया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा?
गोयमा! सव्वत्थोवा जीवा अणागारोवउत्ता, सागारोवउत्ता संखिज गुणा ॥१३ दारं॥१८२॥ __ भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन् ! इन साकारोपयोग वाले और अनाकारोपयोग वाले जीवों में कौन किनसे अल्प, बहुत, तुल्य या विशेषाधिक हैं ?
उत्तर - हे गौतम! सबसे थोड़े जीव अनाकार उपयोग वाले हैं, उनसे साकार उपयोग वाले संख्यात गुणा हैं। - विवेचन - प्रश्न - हे भगवन् ! उपयोग किसको कहते हैं ?
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