Book Title: Pragnapana Sutra Part 01
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh

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Page 357
________________ ३४४ प्रज्ञापना सूत्र ********************************************************************** ********** * ___ अर्थ - जीव के प्रयोग (क्रिया करने) से होने वाले पुद्गल के परिणमन को प्रयोग परिणत कहते हैं जैसे कि जीव के द्वारा कपड़ा, घट (घड़ा) आदि बनाये जाते हैं अथवा जीव द्वारा आठ प्रकार के कर्म पुद्गल ग्रहण किये जाते हैं। वे पुद्गल प्रयोग परिणत कहलाते हैं। प्रयोगविश्रसाभ्यां परिणताः, यथा पटपुद्गला एव प्रयोगेण पटतया, विश्रसा परिणामेण च आभोगे पि पुराणतया इति। ___ अर्थ - विस्रसा का अर्थ है स्वाभाविक। जीव के प्रयोग से और स्वाभाविक रूप से परिणमन होना मिश्र परिणत कहलाता है। जैसे कि जीव के प्रयोग (व्यापार क्रिया) द्वारा कपड़ा बनाया जाता है। वह कपड़ा विस्रसा परिणाम के द्वारा पुराना बनता है। इसे मिश्र परिणत कहते हैं।' विश्रसास्वभावतः तत् परिणता अभ्रेन्द्रधनुःआदिवत् इति। अर्थ - स्वभाव से परिणत पुद्गलों को विस्रसा परिणत कहते हैं। जैसे कि आकाश में इन्द्र धनुष का होना तथा सायंकाल सन्ध्या फूलना अर्थात् सायंकाल के समय आकाश लाल हो जाना। इस विषय में हिन्दी कवि ने भी कहा है - जीव गहिया सो पओगसा, मिस्सा जीवा रहित। विश्रसा हाथ आवे नहीं, जिनवर वाणी तहत॥ अर्थात् - जीव के द्वारा ग्रहण किये हुए पुद्गल प्रयोग परिणत कहलाते हैं। मिश्र पुद्गल जीव रहित होते हैं। विस्रसा पुद्गल ग्रहण नहीं किये जाते हैं अर्थात् वे पकड़े भी नहीं जाते हैं। सबसे थोड़े पुद्गल प्रयोग परिणत हैं उनसे मिश्र परिणत अनन्त गुणा हैं और उनसे विस्रसा परिणत अनन्त गुणा हैं। अतः जीवास्तिकाय से पुद्गलास्तिकाय द्रव्य रूप से अनन्त गुणा हैं। उनसे अद्धासमय-काल भी द्रव्यार्थ रूप से अनंत गुणा हैं क्योंकि एक ही परमाणु के भविष्यकाल में द्विप्रदेशिक, त्रिप्रदेशिक यावत् दशप्रदेशिक, संख्यात प्रदेशिक, असंख्यात प्रदेशिक और अनन्त प्रदेशिक स्कंधों के साथ परिणत होने के कारण ही एक परमाणु के भावी संयोग अनन्त हैं और पृथक् पृथक कालों में होने वाले वे अनंत संयोग केवलज्ञान से ही जाने जा सकते हैं। जैसे एक परमाणु के अनन्त संयोग होते हैं वैसे द्विप्रदेशी स्कंध आदि सर्व परमाणुओं के प्रत्येक के अनन्त अनन्त संयोग भिन्न-भिन्न कालों में होते हैं। ये सब परिणमन मनुष्य लोक (क्षेत्र) के अन्तर्गत होते हैं। इसलिये क्षेत्र की दृष्टि से एक-एक परमाणु के भावी संयोग अनन्त हैं। जैसे यह परमाणु अमुक आकाश प्रदेश में एक समय की स्थिति वाला, दो समय की स्थिति वाला इस प्रकार एक परमाणु के एक आकाश प्रदेश में असंख्यात भावी संयोग होने वाले हैं वैसे ही सर्व आकाश प्रदेश में भी प्रत्येक के असंख्यात भावी संयोग तथा बारंबार उन आकाश प्रदेशों में परमाणु की परावृति होने से और काल अनन्त होने से काल से अनंत भावी संयोग होते हैं। जैसे एक परमाणु के अनंत संयोग होते हैं वैसे ही सर्व परमाणुओं के तथा सभी Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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