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प्रज्ञापना सूत्र
विवेचन - द्रव्य की अपेक्षा छह द्रव्यों का अल्पबहुत्व कहने के बाद प्रस्तुत सूत्र में प्रदेश की अपेक्षा अल्पबहुत्व कहा गया है - धर्मास्तिकाय और अधर्मास्तिकाय ये दोनों प्रदेशों की अपेक्षा परस्पर तुल्य हैं क्योंकि दोनों के प्रदेश लोकाकाश के प्रदेश जितने हैं अतः शेष द्रव्यों की अपेक्षा इनके प्रदेश सबसे थोड़े हैं। उनसे जीवास्तिकाय प्रदेश की अपेक्षा अनन्त गुणा हैं क्योंकि जीव द्रव्य अनन्त हैं और प्रत्येक जीव के प्रदेश लोकाकाश के प्रदेशों के बराबर है। लोकाकाश के प्रदेश असंख्यात होते हैं इसी तरह एक जीव के प्रदेश भी लोकाकाश के जितने असंख्यात होते हैं। उनसे भी पुद्गलास्तिकाय प्रदेशार्थ रूप से अनन्त गुणा हैं यहाँ केवल कर्म स्कन्धों के प्रदेश भी सर्व जीव प्रदेशों से अनन्त गुणा है क्योंकि एक-एक जीव प्रदेश अनन्तानंत कर्म परमाणुओं से आवृत्त है तो सकल पुद्गलास्तिकाय के प्रदेशों के विषय में क्या कहना? अतः जीवास्तिकाय से पुद्गलास्तिकाय प्रदेशार्थ रूप से अनन्त गुणा हैं। उनसे भी अद्धा समय प्रदेशार्थ रूप से अनन्त गुणा हैं। क्योंकि एक-एक . पुद्गलास्तिकाय के प्रदेश के पूर्वोक्त क्रम से उस उस द्रव्य, क्षेत्र, काल और भाव विशेष के संबंध से अनन्त अतीत समय और अनन्त अनागत समय होते हैं। उनसे आकाशास्तिकाय प्रदेश की अपेक्षा अनंत गुणा हैं क्योंकि अलोक चारों ओर असीम और अनन्त है। अलोकाकाश की कोई सीमा (हद) नहीं है और अलोक का अन्त भी नहीं है।
एयस्स णं भंते! धम्मत्थिकायस्स दव्वट्ठपएसट्ठयाए कयरे कयरेहिंतो अप्पा वा बहुया वा तुल्ला वा विसेंसाहिया वा?
गोयमा! सव्वत्थोवे एगे धम्मत्थिकाए दव्वट्ठयाए, से चेव पएसट्ठयाए असंखिज्जगुणे।
भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन् ! इस धर्मास्तिकाय के द्रव्य और प्रदेशों की अपेक्षा से कौन किससे अल्प, बहुत, तुल्य या विशेषाधिक है?
उत्तर - हे गौतम! सबसे थोड़ा धर्मास्तिकाय द्रव्य की अपेक्षा एक है और प्रदेश की अपेक्षा असंख्यात गुणा है।
एयस्स णं भंते! अधम्मत्थिकायस्स दव्वट्ठपएसट्ठयाए कयरे कयरेहितो अप्पा वा बहुया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा?
गोयमा! सव्वत्थोवे एगे अधम्मत्थिकाए दव्वट्ठयाए, से चेव पएसट्टयाए असंखिज्जगुणे।
भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन् ! इस अधर्मास्तिकाय के द्रव्य और प्रदेशों की अपेक्षा से कौन किससे अल्प, बहुत, तुल्य या विशेषाधिक है?
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