________________
तीसरा बहुवक्तव्यता पद - अस्तिकाय द्वार
३४३
****************************************
********************************************
और सबसे थोड़े हैं, उनसे जीवास्तिकाय द्रव्यार्थ रूप से अनंत गुणा हैं, उनसे पुद्गलास्तिकाय द्रव्यार्थ रूप से अनन्त गुणा हैं, उनसे अद्धा समय द्रव्यार्थ रूप से अनन्त गुणा हैं।
विवेचन - प्रश्न - अस्तिकाय किसको कहते हैं ?
उत्तर - अस्ति इति अस्ति। अभूवन् भवन्ति भविष्यन्ति च इति भावना। अत्र अस्ति शब्दः प्रदेशवाचकः। अस्तयः प्रदेशाः तेषामं काया राशय इति अस्तिकायाः।
__ अर्थ - संस्कृत में अस्ति शब्द तीन अर्थों में बनता है-- यथा “अस् भुवि" धातु से लट्लकार प्रथम पुरुष के एक वचन में "अस्ति" शब्द बनता है। जिसका अर्थ है - "होता है" अथवा "है"। अस्ति शब्द एक निपात या अव्यय है। जिसका अर्थ भी यही है अर्थात् 'है'। तीसरा अस्ति शब्द प्रदेशवाची है वह पुःलिङ्ग है और हरि शब्द के समान रूप चलते हैं।
इसलिए यहाँ अस्ति शब्द का बहुवचन "अस्तयः" बनता है। जिसका अर्थ है प्रदेश। धर्मास्तिकाय आदि पांच शब्दों में "अस्ति" शब्द का प्रयोग हुआ है। जिसका अर्थ है प्रदेश अर्थात् धर्म नामक द्रव्य के प्रदेश। इसी तरह अधर्मास्ति आदि में भी समझना चाहिए। “अस्ति" अर्थात् प्रदेशों के समूह को . अस्तिकाय कहते हैं। काल के प्रदेश नहीं होते हैं वह अप्रदेशात्मक है इसलिए काल के साथ "अस्ति' शब्द नहीं लगाया गया है।
अब अस्तिकाय द्वार कहते हैं - धर्मास्तिकाय, अधर्मास्तिकाय और आकाशास्तिकाय ये तीनों द्रव्य रूप से तुल्य-समान हैं क्योंकि प्रत्येक एक एक द्रव्य रूप है अत: सबसे थोड़े हैं उनसे जीवास्तिकाय द्रव्य रूप से अनन्त गुणा हैं क्योंकि जीव अनन्त हैं और प्रत्येक जीव द्रव्य है। उनसे पुद्गलास्तिकाय द्रव्य रूप से अनन्त गुणा हैं क्योंकि परमाणु और द्वि प्रदेशी स्कन्ध आदि पृथक्-पृथक् द्रव्य है, वे सामान्य रूप से तीन प्रकार के हैं -१. प्रयोग परिणत २. मिश्र परिणत और ३. विस्रसा परिणत। इनसे प्रयोग परिणत पुद्गल जीवों की अपेक्षा अनंत गुणा हैं क्योंकि प्रत्येक जीव ज्ञानावरणीय, दर्शनावरणीय आदि प्रत्येक कर्म के अनन्त पुद्गल स्कंधों से व्याप्त है। उन प्रयोग परिणत पुद्गलों से मिश्र परिणत पुद्गल द्रव्य अनन्त गुणा हैं, उनसे विस्रसा परिणत-स्वभाव से परिणमित पुद्गल द्रव्य अनन्त गुणा हैं। भगवती सूत्र में भी कहा है -
"सव्वत्थोवा पुग्गला पयोगपरिणया, मीस परिणया अणंत गुणा, वीससा परिणया अणंत गुणा". .
प्रश्न - प्रयोग परिणत, मिश्र परिणत और विस्रसा परिणत किसे कहते हैं ? उत्तर - पुद्गल के तीन भेद हैं। जो प्रश्न में बताये गये हैं। उनका लक्षण इस प्रकार है - प्रयोगपरिणता जीव व्यापारेण तथाविधपरिणतिं उपनीता यथा पटादिषु कर्मादिषु वा।
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org