Book Title: Pragnapana Sutra Part 01
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh

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Page 355
________________ ३४२ प्रज्ञापना सूत्र ********************************************** ********************* *************** अभव सिद्धिक शब्द बनता है जिसका अर्थ है - जो जीव कभी भी सिद्धि (मोक्ष) को प्राप्त नहीं करेंगे उन्हें अभवसिद्धिक (अभव्य-अभवी) कहते हैं। नोट - भवसिद्धिक और अभवसिद्धिक के विषय में जयन्ती श्राविका ने श्रमण भगवान् महावीर स्वामी से प्रश्न किये हैं और भगवान् ने उत्तर दिये हैं उन प्रश्नोत्तरों का वर्णन भगवती सूत्र के बारहवें शतक के दूसरे उद्देशक में है। प्रश्नोत्तर बड़े रोचक हैं विशेष जिज्ञासुओं को वहाँ अवश्य देखना चाहिए। संज्ञी द्वार कहने के बाद अब भवसिद्धिक द्वार कहते हैं - सबसे थोड़े जीव अभवसिद्धिकं अभव्य (अभवी) हैं क्योंकि वे जघन्य युक्तानंत परिमाण वाले हैं। अनुयोगद्वार सूत्र में कहा है कि - "उक्कोसए परित्ताणंतए रूवे पक्खित्ते जहण्णयं जुत्ताणंतयं होइ, अभवसिद्धि या वि तत्तिया चेव" अर्थात्-उत्कृष्ट परित्तानंत में एक रूप मिलाने से जघन्य युक्तानन्त होता है और अभवसिद्धिक उतने ही हैं। उनसे नो-भवसिद्धिक नो-अभवसिद्धिक जीव अनंत गुणा हैं क्योंकि भवसिद्धिक और अभवसिद्धिक दोनों से रहित सिद्ध जीव हैं और वे अजघन्योत्कृष्ट अनन्तानन्त परिमाण वाले हैं अत: अनंत गुणा हैं उनसे भी भवसिद्धिक (भव्य) जीव अनन्त गुणा हैं क्योंकि सिद्ध, एक भव्य निगोद राशि के अनंतवें भाग जितने हैं और भव्य जीव राशि की निगोद असंख्यात हैं। . ॥ बीसवां भवसिद्धिक द्वार समाप्त॥ २१. इक्कीसवां अस्तिकाय द्वार एएसि णं भंते! धम्मत्थिकाय-अधम्मत्थिकाय-आगासत्थिकाय-जीवत्थिकायपोग्गलत्थिकाय-अद्धासमयाणं दवट्ठयाए कयरे कयरेहितो अप्पा वा बहुया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा? गोयमा! धम्मत्थिकाए अधम्मत्थिकाए आगासत्थिकाए एए णं तिण्णि वि तुल्ला दव्वट्ठयाए सव्वत्थोवा, जीवत्थिकाए दवट्ठयाए अणंत गुणे, पोग्गलत्थिकाए दवट्ठयाए अणंत गुणे, अद्धासमए दव्वट्ठयाए अणंत गुणे॥१९०॥ भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन्! धर्मास्तिकाय अधर्मास्तिकाय, आकाशास्तिकाय, जीवास्तिकाय, पुद्गलास्तिकाय और अद्धासमय (काल) में द्रव्यार्थ रूप से-द्रव्य की अपेक्षा से कौन किनसे अल्प, बहुत, तुल्य या विशेषाधिक हैं ? उत्तर - हे गौतम! धर्मास्तिकाय, अधर्मास्तिकाय, आकाशास्तिकाय ये तीन द्रव्यार्थ रूप से तुल्य Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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