Book Title: Pragnapana Sutra Part 01
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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तीसरा बहुवक्तव्यता पद - काय द्वार
३०५
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पृथ्वीकायिक विशेषाधिक हैं, उनसे अपर्याप्तक सूक्ष्म अप्कायिक विशेषाधिक हैं, उनसे अपर्याप्तक सूक्ष्म वायुकायिक विशेषाधिक हैं, उनसे पर्याप्तक सूक्ष्म तेजस्कायिक विशेषाधिक हैं, उनसे पर्याप्तक सूक्ष्म पृथ्वीकायिक विशेषाधिक हैं, उनसे पर्याप्तक सूक्ष्म अप्कायिक विशेषाधिक हैं, उनसे पर्याप्तक सूक्ष्म वायुकायिक विशेषाधिक हैं, उनसे अपर्याप्तक सूक्ष्म निगोद असंख्यात गुणा हैं, उनसे पर्याप्तक सूक्ष्म निगोद संख्यात गुणा है, उनसे अपर्याप्तक सूक्ष्म वनस्पतिकायिक अनंत गुणा हैं, उनसे अपर्याप्तक सूक्ष्म जीव विशेषाधिक हैं, उनसे पर्याप्तक सूक्ष्म वनस्पतिकायिक संख्यात गुणा हैं, उनसे पर्याप्तक सूक्ष्म विशेषाधिक हैं और उनसे भी सूक्ष्म जीव विशेषाधिक हैं।
विवेचन - प्रस्तुत सूत्र में सूक्ष्म आदि पर्याप्तक अपर्याप्तक जीवों का शामिल अल्पबहुत्व कहा गया है। सबसे थोड़े अपर्याप्तक सूक्ष्म तेजस्कायिक हैं। इसका कारण पूर्व में बता चुके हैं उनसे अपर्याप्तक सूक्ष्म पृथ्वीकायिक, अपर्याप्तक सूक्ष्म अप्कायिक और अपर्याप्तक सूक्ष्म वायुकायिक उत्तरोत्तर विशेषाधिक हैं। इसका कारण पूर्व में बताया गया हैं। उनसे पर्याप्तक सूक्ष्म तेजस्कायिक संख्यात गुणा हैं क्योंकि अपर्याप्तक से पर्याप्तक संख्यात गुणा हैं। उनसे भी सबसे थोड़े अपर्याप्तक सूक्ष्म तेजस्कायिक कहे हैं और दूसरे अपर्याप्तक सूक्ष्म पृथ्वीकायिक आदि उत्तरोत्तर विशेषाधिक कहे हैं। विशेषाधिक यानी कुछ अधिक दुगुने से कम किन्तु दुगुने या तिगुने नहीं। उनसे अपर्याप्तक सूक्ष्म तेजस्कायिक की अपेक्षा पर्याप्तक सूक्ष्म तेजस्कायिक संख्यात गुणा हैं। उनसे सूक्ष्म वायुकायिक अपर्याप्तक से भी संख्यातगुणा है, उनसे पर्याप्तक सूक्ष्म पृथ्वीकायिक विशेषाधिक हैं, उनसे पर्याप्तक सूक्ष्म अप्कायिक विशेषाधिक है, उनसे पर्याप्तक सूक्ष्म वायुकायिक विशेषाधिक हैं, उनसे अपर्याप्तक सूक्ष्म निगोद असंख्यात गुणा है क्योंकि वे प्रचुर (बहुत) है। उनसे पर्याप्तक सूक्ष्म निगोद संख्यात गुणा हैं क्योंकि सूक्ष्म जीवों में सामान्य रूप से अपर्याप्तक से पर्याप्तक संख्यात गुणा हैं। उनसे अपर्याप्तक सूक्ष्म वनस्पतिकायिक अनंत गुणा हैं क्योंकि प्रत्येक निगोद में सूक्ष्म वनस्पतिकायिक अनंत हैं। उनसे सामान्यतः अपर्याप्तक सूक्ष्म विशेषाधिक हैं क्योंकि उनमें सूक्ष्म पृथ्वीकायिक आदि शामिल हैं उनसे पर्याप्तक सूक्ष्म वनस्पतिकायिक संख्यात गुणा हैं क्योंकि सूक्ष्म जीवों में अपर्याप्तकों से पर्याप्तक संख्यात गुणा हैं। जो बीच में अपर्याप्तकों का विशेषाधिकपना कहा गया है, वह अल्प होने से संख्यात गुणा में कोई बाधा नहीं हैं उनसे पर्याप्तक सूक्ष्म विशेषाधिक हैं उनसे सूक्ष्म विशेषाधिक हैं क्योंकि उनमें अपर्याप्तकों का भी समावेश है।
एएसि णं भंते! बायराणं, बायर पुढवीकाइयाणं, बायर आउकाइयाणं, बायर तेउकाइयाणं, बायर वाउकाइयाणं, बायर वणस्सइकाइयाणं, पत्तेयसरीर-बायर वणस्सइकाइयाणं, बायर णिओयाणं, बायर तसकाइयाणं कयरे कयरेहितो अप्पा वा बहया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा?
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