Book Title: Pragnapana Sutra Part 01
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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प्रज्ञापना सूत्र
३. तृतीय इन्द्रिय द्वार एएसि णं भंते! सइंदियाणं एगिदियाणं बेइंदियाणं तेइंदियाणं चउरिदियाणं पंचिंदियाणं अणिंदियाणं च कयरे कयरहितो अप्पा वा बहुया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा?
गोयमा! सव्वत्थोवा पंचिंदिया, चउरिदिया विसेसाहिया, तेइंदिया विसेसाहिया, बेइंदिया विसेसाहिया, अणिंदिया अणंतगुणा, एगिंदिया अणंतगुणा, सइंदिया विसेसाहिया॥१४७॥
भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन् ! सइन्द्रिय (इन्द्रिय वाला) एकेन्द्रिय, बेइन्द्रिय, तेइन्द्रिय, चउरिन्द्रिय, पंचेन्द्रिय और अनिन्द्रिय (इन्द्रिय रहित) जीवों में कौन किनसे अल्प, बहुत, तुल्य या विशेषाधिक हैं ?
उत्तर - हे गौतम! सबसे थोड़े पंचेन्द्रिय हैं, उनसे चउरिन्द्रिय विशेषाधिक है, उनसे तेइन्द्रिय विशेषाधिक हैं, उनसे बेइन्द्रिय विशेषाधिक हैं, उनसे अनिन्द्रिय अनंत गुणा हैं, उनसे एकेन्द्रिय अनन्त गुणा हैं, उनसे सइन्द्रिय विशेषाधिक हैं।
विवेचन - प्रश्न - इन्द्रिय किसे कहते हैं ?
उत्तर - "इन्दति परमैश्वर्यम् भुनक्ति इति इन्द्रः, आत्मा (जीवः )। तस्य जीवस्य लिंगं चिहूं इति इन्द्रियम्।" ___अर्थ - संस्कृत में 'इदि' धातु है। जिसका अर्थ है परम ऐश्वर्य को भोगना। परम ऐश्वर्य को भोगने वाले को इन्द्र कहते हैं। यहाँ इन्द्र शब्द का अर्थ है आत्मा क्योंकि वह परम ऐश्वर्यशाली है। उस आत्मा के चिह्न को इन्द्रिय कहते हैं। इन्द्रियाँ पांच हैं। इसलिए यहाँ इन्द्रिय की अपेक्षा एकेन्द्रिय से लेकर पंचेन्द्रिय तक जीवों के पांच भेद किये गये हैं।
सबसे थोड़े पंचेन्द्रिय हैं क्योंकि असंख्यात कोटाकोटि योजन प्रमाण विष्कंभ सूची जितने प्रतर श्रेणि के असंख्यातवें भाग में रही हुई असंख्याती श्रेणि के आकाश प्रदेश की राशि प्रमाण है। उनसे चउरिन्द्रिय विशेषाधिक हैं क्योंकि उनकी विष्कंभ सूची प्रचुर-बहुत असंख्यात कोटाकोटि योजन प्रमाण है। उनसे तेइन्द्रिय जीव विशेषाधिक हैं क्योंकि उनकी विष्कंभ सूची प्रचुरतर असंख्यात कोटाकोटि योजन प्रमाण है। उनसे भी बेइन्द्रिय जीव विशेषाधिक हैं क्योंकि उनकी विष्कंभ सूची प्रचुरतम असंख्यात कोटाकोटि योजन प्रमाण है, उनसे अनिन्द्रिय अनन्त गुणा हैं क्योंकि सिद्ध जीव अनन्त हैं, उनसे भी एकेन्द्रिय अनन्त गुणा हैं क्योंकि वनस्पतिकायिक जीव सिद्धों से भी अनन्त गुणा हैं, उनसे भी सइन्द्रिय-इन्द्रिय सहित विशेषाधिक हैं क्योंकि उसमें बेइन्द्रिय आदि सभी जीवों का समावेश हो जाता है। इस प्रकार सामान्य जीवों का अल्पबहुत्व कहा गया है।
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