________________
२९२
प्रज्ञापना सूत्र
****************************
**
*
**
*
*
*
*
**
*
*
*
*
*
*
*
**
*
*
*
*
*
*
*
*
************************
उत्तर - हे गौतम! सबसे थोड़े चउरिन्द्रिय पर्याप्तक हैं उनसे पंचेन्द्रिय पर्याप्तक विशेषाधिक हैं उनसे बेइन्द्रिय पर्याप्तक विशेषाधिक हैं उनसे तेइन्द्रिय पर्याप्तक विशेषाधिक हैं उनसे एकेन्द्रिय पर्याप्तक अनंत गुणा हैं उनसे सइन्द्रिय पर्याप्तक विशेषाधिक हैं।
विवेचन - सबसे थोड़े पर्याप्तक चउरिन्द्रिय जीव हैं क्योंकि चउरिन्द्रिय जीव की आयु बहुत अल्प होती है अतः अधिक काल तक नहीं रहने से वे प्रश्न के समय थोड़े ही पाये जाते हैं। उनसे पर्याप्तक पंचेन्द्रिय विशेषाधिक हैं क्योंकि वे प्रचुर प्रतर अंगुल के संख्येय भाग खण्ड प्रमाण हैं। उनसे पर्याप्तक बेइन्द्रिय विशेषाधिक हैं क्योंकि वे प्रचुरतर प्रतर अंगुल के संख्येय भाग खण्ड प्रमाण हैं। उनसे पर्याप्तक तेइन्द्रिय विशेषाधिक हैं क्योंकि वे स्वभाव से ही प्रचुरतम प्रतर अंगुल के संख्यात भाग खण्ड प्रमाण हैं। उनसे पर्याप्तक एकेन्द्रिय अनन्त गुणा हैं क्योंकि पर्याप्तक वनस्पतिकायिक अनन्त हैं उनसे पर्याप्तक सइन्द्रिय विशेषाधिक है क्योंकि पर्याप्तक बेइन्द्रिय आदि का भी उनमें समावेश है।
एएसि णं भंते! सइंदियाणं पजत्तापजत्तगाणं कयरे कयरेहिंतो अप्या वा बहुया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा?
गोयमा! सव्वत्थोवा सइंदिया अपजत्तगा, सइंदिया पजत्तगा संखिज गुणा॥
भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन् ! सइन्द्रिय पर्याप्तकों और अपर्याप्तकों में कौन किनसे अल्प, बहुत, तुल्य या विशेषाधिक हैं?
उत्तर - हे गौतम! सबसे थोड़े सइन्द्रिय अपर्याप्तक हैं उनसे सइन्द्रिय पर्याप्तक संख्यात गुणा हैं।
विवेचन - सइन्द्रियों (इन्द्रियाँ सहित) में एकेन्द्रिय बहुत हैं और उनमें भी सूक्ष्म एकेन्द्रिय बहुत हैं क्योंकि वे सर्वलोक व्यापी हैं। उनमें अपर्याप्तक थोड़े हैं। इसलिए सइन्द्रिय अपर्याप्तक थोड़े हैं और सइन्द्रिय पर्याप्तक उनसे असंख्यात गुणा हैं।
एएसि णं भंते! एगिंदियाणं पजत्तापजत्तगाणं कयरे कयरेहिंतो अप्पा वा बहुया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा?
गोयमा! सव्वत्थोवा एगिंदिया अपजत्तगा, एगिंदिया पजत्तगा संखिज गुणा॥
भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन्! एकेन्द्रिय पर्याप्तकों और अपर्याप्तकों में कौन किनसे अल्प, बहुत, तुल्य या विशेषाधिक हैं?
उत्तर - हे गौतम! सबसे थोड़े एकेन्द्रिय अपर्याप्तक हैं उनसे एकेन्द्रिय पर्याप्तक संख्यात गुणा हैं। विवेचन - जिस प्रकार सइन्द्रिय का अल्पबहुत्व कहा गया है उसी प्रकार एकेन्द्रिय के पर्याप्तक और अपर्याप्तक का भी अल्प बहुत्व समझ लेना चाहिए।
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org