Book Title: Pragnapana Sutra Part 01
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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तीसरा बहुवक्तव्यता पद - दिशा द्वार
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हैं। पूर्व दिशा से भी पश्चिम दिशा में पृथ्वीकायिक जीव विशेषाधिक कहे गये हैं क्योंकि वहां चन्द्र और सूर्य के द्वीप के अतिरिक्त गौतम नामक द्वीप भी है।
२. अपकायिक जीवों का अल्पबहुत्व - सब से थोड़े अप्कायिक जीव पश्चिम दिशा में हैं क्योंकि वहां गौतम द्वीप होने से अप्काय कम हैं। उनसे पूर्व दिशा में अप्कायिक जीव विशेषाधिक हैं क्योंकि वहां गौतमद्वीप नहीं है। उनसे भी विशेषाधिक दक्षिण दिशा में हैं क्योंकि वहां चन्द्र और सूर्य के द्वीप नहीं हैं। उनसे भी उत्तर दिशा में विशेषाधिक हैं क्योंकि वहां मानस सरोवर है।
३. तेजस्कायिक जीवों का अल्पबहुत्व - दक्षिण दिशा और उत्तर दिशा में सबसे थोड़े तेजस्कायिक जीव हैं क्योंकि मनुष्य क्षेत्र में ही बादर तेजस्कायिक है अन्य स्थानों में नहीं हैं उसमें भी जहां मनुष्य अधिक है वहां तेजस्कायिक जीव अधिक हैं क्योंकि वहां पचन पाचन की क्रिया विशेष संभव है जहां मनुष्य थोड़े हैं वहां तेजस्कायिक जीव भी थोड़े हैं। दक्षिण दिशा में पांच भरत क्षेत्रों में और उत्तर दिशा में पांच ऐरवत क्षेत्रों में क्षेत्र की अल्पता होने से मनुष्य थोड़े हैं अतएव दक्षिण और उत्तर में तेजस्कायिक जीव सब से थोड़े हैं और स्वस्थान की अपेक्षा प्रायः समान है। उनसे पूर्व दिशा में संख्यात गुणा हैं क्योंकि क्षेत्र संख्यात गुणा है। उनसे पश्चिम दिशा में विशेषाधिक हैं क्योंकि अधोलौकिक ग्रामों में मनुष्य अधिक हैं। सलिलावती विजय और वप्रा विजय एक हजार योजन की ऊंडी है नौ सौ योजन तक तो तिर्छा लोक है और सौ योजन अधोलोक में हैं।
४. वायुकायिक जीवों का अल्पबहुत्व - जहां पोलार है वहां वायु है और जहां घन (ठोस) भाग है वहां वायु नहीं है। पूर्व दिशा में घन भाग आधिक होने से वायुकायिक जीव थोड़े हैं। उनसे पश्चिम दिशा में वायुकायिक विशेषाधिक हैं क्योंकि वहां अधोलौकिक ग्राम हैं। उनसे उत्तर दिशा में वायुकायिक जीव विशेषाधिक हैं क्योंकि वहां बहुत से भवन और नरकावास हैं और भवनों और नरकावासों की अधिकता होने से वहां पोलार अधिक हैं। उनसे भी दक्षिण दिशा में विशेषाधिक हैं क्योंकि वहां उत्तर दिशा की अपेक्षा अधिक भवन और नरकावास हैं।
५. वनस्पतिकायिक जीवों का अल्पबहुत्व - वनस्पतिकायिक जीवों का अल्पबहुत्व अप्कायिक जीवों की तरह समझना क्योंकि जहां अधिक जल है वहां पनक शैवाल आदि बहुत अनंतकायिक वनस्पति होती है।
पृथ्वीकाय के जीव पूर्व दिशा की अपेक्षा पश्चिम दिशा में विशेषाधिक बताया है। इसका कारण यह है कि पश्चिम दिशा में लवण समुद्र में गौतम द्वीप है। वह पृथ्वीकाय का है। इसलिये पृथ्वीकायिक जीव बढ़े। यद्यपि पश्चिम दिशा में अधोलौकिक ग्राम (जम्बूद्वीप के महाविदेह क्षेत्र में सलिलावती विजय और वप्रा विजय) एक हजार योजन ऊँडे हैं। परन्तु "खातपूरित न्याय" से पृथ्वीकाय विशेष सम्भवित नहीं हो सकते हैं। तथापि पूर्व दिशा में भी बहुत रूबड़खाबड़ खड्डे आदि होने से मेरु पर्वत से
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