Book Title: Pragnapana Sutra Part 01
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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२३६
प्रज्ञापना सूत्र
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पण्णत्ता। तंजहा - अंकवडिंसए, फलिहवडिंसए, रयणवडिंसए, जायरूववडिंसए, मज्झे इत्थ ईसाणवडिंसए। ते णं वडिंसया सव्व रयणामया जाव पडिरूवा। एत्थ णं ईसाणग देवाणं पजत्तापजत्तगाणं ठाणा पण्णत्ता। तिसु वि लोगस्स असंखिजइभागे। सेसं जहा सोहम्मग देवाणं जाव विहरंति। - ईसाणे इत्थ देविंदे देवराया परिवसइ, सूलपाणी, वसहवाहणे, उत्तरड्डुलोगाहिवई, अट्ठावीस विमाणावास-सयसहस्साहिवई, अरयंबरवत्थधरे, सेसं जहा सक्कस्स जाव पभासेमाणे। से णं तत्थ अट्ठावीसाए विमाणावास सयसहस्साणं, असीईए सामाणिय साहस्सीणं, तायत्तीसाए तायत्तीसगाणं, चउण्हं लोगपालाणं, अट्ठण्हं अग्गमहिसीणं सपरिवाराणं, तिण्हं परिसाणं, सत्तण्हं अणियाणं, सत्तण्हं अणियाहिवईणं, चउण्हं असीईण आयरक्खदेव साहस्सीणं, अण्णेसिंच बहूणं ईसाण कम्पवासीण वेमाणियाणं देवाण य देवीण य आहेवच्चं जाव विहरइ॥१२३॥
भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन् ! पर्याप्तक और अपर्याप्तक ईशान देवों के स्थान कहाँ कहे गये हैं ? हे भगवन् ! ईशान देव कहाँ निवास करते हैं?
उत्तर - हे गौतम! जंबूद्वीप नामक द्वीप में मेरु पर्वत के उत्तर में इस रत्नप्रभा पृथ्वी के बहु सम और रमणीय भू भाग से ऊपर चन्द्र, सूर्य, ग्रह, नक्षत्र और तारा रूप ज्योतिषिकों से अनेक सौ योजन, अनेक हजार योजन, अनेक लाख योजन, अनेक करोड़ योजन और बहुत कोटा-कोटि योजन ऊपर जाने पर ईशान नामक कल्प कहा गया है। वह पूर्व पश्चिम में लम्बा और उत्तर दक्षिण में चौड़ा है इत्यादि सौधर्म कल्प के विषय में जैसा कहा गया है उसी प्रकार यावत् प्रतिरूप है तक कह देना चाहिये। वहाँ ईशान देवों के २८ अट्ठावीस लाख विमान हैं। वे विमान सर्व रत्नमय यावत् प्रतिरूप हैं उनके ठीक मध्यभाग में पांच अवतंसक विमान कहे गये हैं। वे इस प्रकार हैं - १. अंकावतंसक २. स्फटिकावतंसक ३. रत्नावतंसक ४. जात रूपावतंसक और इनके मध्यभाग में ५. ईशानावतंसक है। वे अवतंसक विमान सर्व रत्नमय यावत् प्रतिरूप हैं। यहाँ पर्याप्तक और अपर्याप्तक ईशान देवों के स्थान कहे गये हैं। वे उपपात, समुद्घात और स्वस्थान इन तीनों की अपेक्षाओं से लोक के असंख्यातवें भाग में है। शेष सारा वर्णन सौधर्म देवलोक के विषय में जैसा कहा गया है उसी प्रकार यावत् विचरण करते हैं वहाँ तक समझना चाहिये।
यहाँ ईशान नामक देवेन्द्र देवराज निवास करता है जो शूल पाणि (हाथ में शूल लिए हुए) वृषभवाहन, लोक के उत्तरार्द्ध का अधिपति, अट्ठाईस लाख विमानों का स्वामी और रज रहित स्वच्छ
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