Book Title: Pragnapana Sutra Part 01
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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दूसरा स्थान पद - सिद्धों के स्थान
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माप दूसरी दिशा (पश्चिम) में भी होने से उन दोनों तरफ की दिशाओं (पूर्व से पश्चिम तक) के माप को शामिल करने पर एक रज्जु का परिमाण होता है। इस प्रकार आगमिक वर्णन से रज्जु का परिमाण समझना चाहिये।
प्रश्न - योजन किसे कहते हैं ?
उत्तर - चौबीस अङ्गल का एक हाथ होता है। चार हाथ का एक धनुष होता है। दो हजार धनुष का एक गाऊ होता है। चार गाऊ का एक योजन होता है।
सिद्धों के स्थान कहि णं भंते! सिद्धाणं ठाणा पण्णत्ता? कहिणं भंते! सिद्धा परिवसंति?
गोयमा! सव्वट्ठसिद्धस्स महाविमाणस्स उवरिल्लाओ थूभियग्गाओ दुवालस जोयणे उड़े अबाहाए एत्थ णं ईसीपब्भारा णामं पुढवी पण्णत्ता। पणयालीसं जोयणसयसहस्साई आयामविक्खंभेणं, एगा जोयणकोडी बायालीसं च सयसहस्साइं तीसं च सहस्साई दोण्णि य अउणापण्णे जोयणसए किंचि विसेसाहिए परिक्खेवेणं पण्णत्ता। ईसीपब्भाराए णं पुढवीए बहुमझदेसभाए अट्ठजोयणिए खेत्ते अट्ठ जोयणाइं बाहल्लेणं पण्णत्ते। तओ अणंतरं च णं मायाए मायाए पएसपरिहाणीए परिहायमाणी परिहायमाणी सव्वेसु चरमंतेसु मच्छियपत्ताओ तणुययरी, अंगुलस्स असंखेजइभागे बाहल्लेणं पण्णत्ता।
ईसीपब्भाराए णं पुढवीए दुवालस णामधिजा पण्णत्ता। तंजहा - ईसी इ वा, ईसीपब्भारा इ वा, तणू इ वा, तणुतणू इ वा, सिद्धि इ, वा सिद्धालए इ वा, मुत्ती इ वा, मुत्तालए इ वा, लोयग्गे इ वा, लोयग्गथूभिया इ वा, लोयग्गपडिवुज्झणा इ वा सव्वपाणभूयजीवसत्तसुहावहा इ वा।
ईसीपब्भारा णं पुढवी सेया संखदल विमल-सोत्थिय-मुणाल-दगरय-तुसारगोक्खीरहारवण्णा, उत्ताणयछत्तसंठाणसंठिया सव्वज्जुण-सुवण्णमई, अच्छा, सण्हा, लण्हा, घट्ठा, मट्ठा, णीरया, णिम्मला, णिप्पंका, णिक्कंकडच्छाया, सप्पभा, सस्सिरिया, सउज्जोया, पासाईया, दरिसणिजा, अभिरूवा, पडिरूवा।
ईसीपब्भाराए णं पुढवीए सीआए जोयणम्मि लोगंतो, तस्स जोयणस्स जे से उवरिल्ले गाउए, तस्स णं गाउयस्स जे से उवरिल्ले छब्भागे, एत्थ णं सिद्धा भगवंतो
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