Book Title: Pragnapana Sutra Part 01
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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दूसरा स्थान पद - वैमानिक देवों के स्थान
२४७
भासरासिवण्णाभा, सेसं जहा बंभलोगे जाव पडिरूवा। तत्थ णं हेट्ठिम गेविजगाणं देवाणं एक्कारसुत्तरे विमाणावास सए भवंतीति मक्खायं। ते णं विमाणा सव्व रयणामया जाव पडिरूवा। ___ एत्थ णं हेट्ठिम-गेविज्जगाणं देवाणं पजत्तापजत्तगाणं ठाणा पण्णत्ता। तिसु वि लोगस्स असंखिजइभागे। तत्थ णं बहवे हेट्ठिमगेविज्जगा देवा परिवसंति। सव्वं समिड्डिया, सव्वे समजुइया, सव्वे समजसा, सव्वे समबला, सव्वे समाणुभावा, महासुक्खा, अणिंदा, अपेस्सा, अपुरोहिया, अहमिंदा णामं ते देवगणा पण्णत्ता समणाउसो!॥१३२॥ .
भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन् ! पर्याप्तक और अपर्याप्तक नीचे (अधस्तन) ग्रैवेयक देवा के स्थान कहाँ कहे गये हैं ? हे भगवन् ! नीचे के ग्रैवेयक देव कहाँ निवास करते हैं ?
उत्तर - हे गौतम! आरणं और अच्युत कल्प के ऊपर यावत् ऊर्ध्व दूर जाने पर नीचे के रोवेयक देवों के तीन ग्रैवेयक विमान प्रस्तट-पाथड़े हैं। जो पूर्व पश्चिम में लम्बे और उत्तर दक्षिण में चौड़े प्रतिपूर्ण चन्द्र के आकार में सूर्य की तेजो राशि जैसे वर्ण वाले हैं। शेष वर्णन ब्रह्मलोक कल्प की तरह यावत् प्रतिरूप है तक समझना चाहिये।
वहाँ नीचे के ग्रैवेयक देवों के एक सौ ग्यारह (१११) विमान है, ऐसा कहा गया है। वे विमान सर्वरत्नमय यावत् प्रतिरूप हैं। यहाँ पर्याप्तक और अपर्याप्तक अधस्तन (नीचे के) ग्रैवेयक दवा के । स्थान कहे गये हैं। ये स्थान तीनों अपेक्षाओं से लोक के असंख्यातवें भाग में कहे गये हैं। उनमें बहुत से अधस्तन ग्रैंवेयक देव निवास करते हैं। वे सभी समान ऋद्धि वाले, समान द्युति वाले, समान यस वाले, समान बल वाले, समान प्रभाव वाले, महान् सुखी, इन्द्र रहित, प्रेष्य (चाकर) रहित, पुरोहित रहित हैं और हे आयुष्मन् श्रमण ! वे देवगण अहमिन्द्र नाम से कहे गये हैं। __कहि णं भंते! मज्झिम गेविजगाणं देवाणं पज्जत्तापजत्तगाणं ठाणा पण्णत्ता? कहि णं भंते! मज्झिम गेविजगा देवा परिवसंति?
गोयमा! हेड्रिम गेविजगाणं उप्पिं सपक्खिं सपडिदिसिं जाव उप्पइत्ता एत्थ णं मज्झिम गेविजग देवाणं तओ गेविजग विमाण पत्थडा पण्णत्ता। पाईणपडीणायया जहा हेट्ठिम गेविनगाणं। णवरं सत्तुत्तरे विमाणावास सए भवंतीति मक्खायं। ते णं विमाणा जाव पडिरूवा।
एत्थ णं मज्झिम-गेविजगाणं जाव तिसु वि लोगस्स असंखिज्जइभागे। तत्थ णं
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