Book Title: Pragnapana Sutra Part 01
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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दसरा स्थान पद - वैमानिक देवों के स्थान *********************** विहरइ। णवरं चउण्हं विमाणावास सयसहस्साणं, सट्टीए सामाणिय साहस्सीणं, चउण्ह यं सट्ठीए आयरक्खदेव साहस्सीणं, अण्णेसिं च बहूणं जाव विहरइ॥१२६॥
भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन्! पर्याप्तक और अपर्याप्तक ब्रह्मलोक देवों के स्थान कहाँ कहे गये हैं ? हे भगवन् ! ब्रह्मलोक देव कहाँ निवास करते हैं ? ।
उत्तर - हे गौतम! सनत्कुमार और माहेन्द्र देवलोक के ऊपर समान दिशाओं में और समान विदिशाओं में बहुत योजन यावत् ऊपर जाने पर ब्रह्मलोक नामक कल्प है। जो पूर्व पश्चिम में लंबा
और उत्तर दक्षिण में चौड़ा, परिपूर्ण चन्द्रमा के आकार का ज्योतिवाला तथा दीप्ति राशि की प्रभा वाला है। शेष सारा वर्णन सनत्कुमार की तरह जानना चाहिये। विशेषता यह है कि इसमें चार लाख विमान है। इनके अवतंसक सौधर्म देवलोक के अवतंसकों की तरह समझना किन्तु उनके मध्य भाग में ब्रह्मलोक अवतंसक है।
यहाँ ब्रह्मलोक देवों के स्थान कहे गये हैं। शेष सारा वर्णन यावत विचरण करते हैं वहाँ तक कह देना चाहिये।
यहाँ ब्रह्मनामक देवों का इन्द्र, देवों का राजा निवास करता है जो रज रहित स्वच्छ वस्त्रों को धारण करता है। इत्यादि सारा वर्णन सनत्कुमार की तरह यावत् विचरण करता है तक कह देना चाहिये परन्तु च लाख विमानों का. साठ हजार सामानिक देवों का. चार गणा साठ हजार (दो लाख चालीस हजार) आत्मरक्षक देवों का और अन्य बहुत से देवों और देवियों का आधिपत्य करता हुआ यावत् विचरण करता है। . कहि णं भंते! लंतग देवाणं पजत्तापज्जत्तगाणं ठाणा पण्णत्ता? कहि णं भंते! लंतगदेवा.परिवसंति?
गोयमा! बंभलोगस्स कप्पस्स उप्पिं सपक्खि सपडिदिसिं बहुइं जोयणाइं जाव बहुगाओ जोयण कोडाकोडीओ उड्डे दूरं उप्पइत्ता एत्थ णं लंतए णामं कप्पे पण्णत्ते, पाईण पडीणायए, जहा बंभलोए। णवरं पण्णासं विमाणावास सहस्सा भवंतीति मक्खायं। वडिंसगा जहा ईसाण वडिंसगा, णवरं मझे इत्थ लंतग वडिंसए, देवा तहेव जाव विहरंति। ___ लंतए एत्थ देविंदे देवराया परिवसइ, जहा सणंकुमारे। णवरं पण्णासाए विमाणावास सहस्साणं, पण्णासाए सामाणिय साहस्सीणं चउण्ह य पण्णासाणं आयरक्खदेव साहस्सीणं अण्णेसिं च बहूणं जाव विहरइ॥१२७॥
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