Book Title: Pragnapana Sutra Part 01
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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दूसरा स्थान पद - वैमानिक देवों के स्थान
२३१
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दिव्वेणं वण्णेणं, दिव्वेणं गंधेणं, दिव्वेणं फासेणं, दिव्वेणं संघयणेणं, दिव्वेणं संठाणेणं, दिव्वाए इड्डीए, दिव्वाए जुईए, दिव्वाए पभाए, दिव्वाए छायाए, दिव्वाए अच्चीए, दिव्वेणं तेएणं, दिव्वाए लेसाए, दस दिसाओ उज्जोवेमाणा, पभासेमाणा, ते णं तत्थ साणं साणं विमाणा वास सयसहस्साणं, साणं साणं सामाणियसाहस्सीणं, साणं साणं तायत्तीसगाणं, साणं साणं लोगपालाणं, साणं साणं अग्गमहिसीणं सपरिवाराणं, साणं साणं परिसाणं, साणं साणं अणियाणं, साणं साणं अणियाहिवईणं, साणं साणं आयरक्ख देव साहस्सीणं, अण्णेसिं च बहूणं वेमाणियाणं देवाण य देवीण य आहेवच्चं पोरेवच्चं जाव दिव्वाइं भोगभोगाइं भुंजमाणा विहरंति॥१२१॥ ___.भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन् ! पर्याप्तक और अपर्याप्तक वैमानिक देवों के स्थान कहाँ कहे गये हैं ? हे भगवन् ! वैमानिक देव कहाँ रहते हैं?
उत्तर - हे गौतम! इस रत्नप्रभा पृथ्वी के बहु सम एवं रमणीय भूमिभाग से अर्थात् मेरु पर्वत के ठीक बीचोबीच रहे हुए आठ रुचक प्रदेशों से ऊपर चन्द्र, सूर्य, ग्रह, नक्षत्र, तारक रूप ज्योतिषिकों से अनेक सौ योजन, अनेक हजार योजन, अनेक लाख योजन, अनेक करोड़ योजन और बहुत कोटाकोटि योजन ऊपर दूर जाने पर सौधर्म ईशान, सनत्कुमार, माहेन्द्र, ब्रह्मलोक, लान्तक, महाशुक्र, सहस्रार, आनत, प्राणत, आरण, अच्युत, ग्रैवेयक और अनुत्तर विमानों में वैमानिक देवों के चौरासी लाख सत्तानवें हजार तेईस विमान है, ऐसा कहा गया है। - वे विमान सर्व रत्नमय, स्वच्छ, कोमल, स्निग्ध, घिसे हुए, साफ किये हुए, रज रहित, निर्मल, निष्पंक, निरावरण, दिप्ति वाले, प्रभा सहित, शोभा सहित, उद्योत सहित, प्रसन्नता उत्पन्न करने वाले, दर्शनीय, अभिरूप और प्रतिरूप हैं।
- यहाँ पर्याप्तक और अपर्याप्तक वैमानिक देवों के स्थान कहे गये हैं। उपपात, समुद्घात और स्व स्थान इन तीनों अपेक्षाओं से लोक के असंख्यातवें भाग में हैं। वहाँ बहुत से वैमानिक देव निवास करते हैं। वे इस प्रकार हैं - सौधर्म, ईशान, सनत्कुमार, माहेन्द्र, ब्रह्मलोक, लान्तक, महाशुक्र, सहस्रार, आनत, प्राणत आरण, अच्युत, ग्रैवेयक और अनुत्तरौपपातिक देव हैं। वे क्रमशः मृग, महिष, वराह, सिंह, बकरा, दर्दुर (मेंढक), अश्व, हाथी, भुजंग (सर्प), गेंडा, वृषभ (बैल) और विडिम (मृगविशेष) के प्रकट चिह्म से युक्त मुकुट वाले, शिथिल और श्रेष्ठ मुकुट और किरीट के धारक, श्रेष्ठ कुण्डलों से उद्योतित मुख वाले, मुकुट से शोभा युक्त रक्त प्रकाश वाले, पद्म के समान गौर, श्वेत, शुभ वर्ण, गंध
और स्पर्श वाले, उत्तम वैक्रिय शरीर वाले, श्रेष्ठ वस्त्र, गंध, माला और विलेपन धारण करने वाले, महाऋद्धि वाले, महाद्युति वाले, महायशस्वी, महाबली, महानुभाग, महासुखी, हार से सुशोभित
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