Book Title: Pragnapana Sutra Part 01
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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दूसरा स्थान पद - नैरयिक स्थान
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१८३
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ववगय-गहचंद-सूर-णक्खत्तजोइसियप्पहा, मेद-वसा-पूयपडल-रुहिरमंसचिक्खिल्ललित्ताणुलेवणतला, असुई वीसा परमदुब्भिगंधा, कक्खडफासा, दुरहियासा, असुभा णरगा, असुभा णरगेसु वेयणाओ, एत्थ णं तमतमप्यभा पुढवी जेरइयाणं पजत्तापजत्तगाणं ठाणा पण्णत्ता। उववाएणं लोयस्स असंखिज्जइ भागे, समुग्घाएणं लोयस्स असंखिज्जइ भागे, सट्ठाणेणं लोयस्स असंखिजइ भागे। तत्थ णं बहवे तमतमप्पभा पुढवी जेरइया परिवसंति। काला कालोभासा गंभीरलोमहरिसा भीमा उत्तासणया परमकिण्हा वण्णेणं पण्णत्ता समणाउसो! ते णं तत्थ णिच्चं भीया, णिच्चं तत्था, णिच्चं तसिया, णिच्चं उव्विग्गा, णिच्चं परममसुहसंबद्धं णरगभयं पच्चणुभवमाणा विहरंति।
आसीयं बत्तीसं अट्ठावीसं च हंति वीसं च। अट्ठारस सोलसगं अटुत्तरमेव हिटिमिया॥१॥ अद्भुत्तरं च तीसं छव्वीसं चेव सयसहस्सं तु। अट्ठारस सोलसगं चउद्दसमहियं तु छट्ठीए॥२॥ अद्धतिवण्णसहस्सा उवरिमहे वजिऊण तो भणियं। मझे तिसहस्सेसं होंति उणरगा तमतमाए॥३॥ तीसा य पण्णवीसा पण्णरस दसेव सयसहस्साइं। तिण्णि य पंचूणेगं पंचेव अणुत्तरा णरगा॥४॥१०३॥
भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन् ! पर्याप्तक और अपर्याप्तक तमःतमःप्रभा नामक सातवीं पृथ्वी (नरक) के नैरयिकों के स्थान कहां कहे गये हैं? हे भगवन । तमःतमःप्रभा पथ्वी के नैरयिक कहां रहते हैं
उत्तर - हे गौतम! एक लाख आठ हजार योजन मोटाई वाली तम:तमःप्रभा पृथ्वी के ऊपर से साढ़े बावन हजार योजन अवगाहन (प्रवेश) कर और नीचे भी साढ़े बावन हजार योजन छोड़ कर शेष मध्य के तीन हजार योजन में तम:तमःप्रभा पृथ्वी के पर्याप्तक और अपर्याप्तक नैरयिकों के पांच दिशाओं में पांच अनुत्तर ऐसे बड़े बड़े महा नरकावास कहे गये हैं। वे इस प्रकार हैं - १. काल २. महाकाल ३. रौरव ४. महारौरव और ५. अप्रतिष्ठान। वे नरक अंदर से गोल, बाहर से चौकोण और नीचे से क्षुरप्र-उस्तुरे के आकार वाले हैं। वे प्रकाश के अभाव में निरन्तर अंधकार वाले, ग्रह, चन्द्रमा, सूर्य, नक्षत्र, तारे आदि ज्योतिष्कों की प्रभा से रहित हैं। उनके तलभाग मेद, चर्बी, मवाद के पटल, रुधिर और मांस के कीचड के लेप से लिप्त अशुचि अपवित्र, बीभत्स अत्यंत दुर्गन्धित, कर्कश
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