Book Title: Pragnapana Sutra Part 01
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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दूसरा स्थान पद - नैरयिक स्थान
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कहते हैं। दूसरी नरक में शर्करा अर्थात् तीखे पत्थरों के टुकड़ों की अधिकता है इसलिए उसे शर्कराप्रभा कहते हैं। तीसरी नरक में बालुका अर्थात् बालू रेत अधिक है। वह भडभुंजा की भाड से अनन्तगुणा अधिक तपती है इसलिए उसे बालुकाप्रभा कहते हैं। चौथी नरक में रक्त मांस के कीचड़ की अधिकता है इसलिए उसे पङ्कप्रभा कहते हैं। पांचवीं नरक में धूम (धुंआ) अधिक है। वह सोमिल खार से भी अनन्त गुणा अधिक खारा है इसलिए उसे धूमप्रभा कहते हैं। छठी नरक में तमः (अंधकार) की अधिकता है, इसलिए उसे तमःप्रभा कहते हैं। सातवीं नरक में महातमस् अर्थात् गाढ़ अन्धकार है इसलिए उसे महातम:प्रभा कहते हैं। इसको तमस्तमःप्रभा भी कहते हैं जिसका अर्थ है जहां घोर अंधकार ही अन्धकार है।
प्रश्न - सात नरकों में कितने नरकावास हैं ?
उत्तर - पहली नारकी में तीस लाख, दूसरी में पच्चीस लाख, तीसरी में पन्द्रह लाख, चौथी में दस लाख, पांचवीं में तीन लाख, छठी में पांच कम एक लाख और सातवीं में पांच नरकावास है। सातवीं के पांच नरकावासों के नाम इस प्रकार हैं - १. पूर्व दिशा में काल २. दक्षिण दिशा में महाकाल ३. पश्चिम दिशा में रोसक (रौरव) ४. उत्तर दिशा में महारोसक (महारौरव) ५. इन चारों के बीच में अप्रतिष्ठान। कुल मिला कर चौरासी लाख नरकावास हैं।।
प्रश्न - सात नरकों का बाहल्य (मोटाई) कितना है ?
उत्तर - रत्नप्रभा का बाहल्य (मोटाई) एक लाख अस्सी हज़ार योजन का है। शर्कराप्रभा का एक लाख बत्तीस हजार, बालुकाप्रभा का एक लाख अट्ठाईस हजार, पङ्कप्रभा का एक लाख बीस हजार, धूमप्रभा का एक लाख अठारह हजार, तमःप्रभा का एक लाख सोलह हजार, महातमः प्रभा का एक लाख आठ हजार योजन का बाहल्य है।
प्रश्न - नैरयिक जीवों का वर्ण, गंध, रस, स्पर्श कैसा होता है ?
उत्तर - वर्ण - नैरयिक जीव भयंकर रूप वाले होते हैं। अत्यंत काले, काली प्रभा वाले तथा भय . से उत्कट रोमाञ्च वाले होते हैं। प्रत्येक नैरयिक जीव का रूप एक दूसरे को भय उत्पन्न करता है।
गन्ध - सांप, गाय, घोड़ा, भैंस आदि के सड़े हुए मृत शरीर से भी कई गुणा अधिक दुर्गन्ध नैरयिक जीवों के शरीर से निकलती है उनमें कोई चीज रमणीय और प्रिय नहीं होती।
स्पर्श- तलवार की धार, उस्तुरे की धार, कदम्ब चीरिका (एक तरह का घास जो डाभ से भी बहुत तीखा होता है) शक्ति, सूइयों का समूह, बिच्छू का डंक, कपिकच्छू (खाज पैदा करने वाली बेल), अंगार, ज्वाला, छाणों की आग, आदि से भी अधिक कष्ट देने वाला नरक भूमि का स्पर्श होता है।
प्रश्न - घनोदधि किसको कहते हैं ?
उत्तर - बर्फ की तरह जमे हुए ठोस पानी को घनोदधि कहते हैं। वह सातों नरकों में प्रत्येक नरक के नीचे बीस-बीस हजार योजन का मोटा है।
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