Book Title: Pragnapana Sutra Part 01
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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प्रज्ञापना सूत्र ****************
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सुशोभित हैं। यंत्रों, शतघ्नियों (ऐसी तोप जिसको एक वक्त चलाने पर एक साथ सौ आदमी मारे जाते हो उसको शतघ्नी कहते हैं), मूसलों, मुसुण्ढी नामक शस्त्रों से युक्त अयोध्य-शत्रुओं द्वारा युद्ध न कर सकने योग्य, सदाजय, सदागुप्त (सदैव सुरक्षित) अडतालीस प्रकोष्ठों-कमरों से रचित, अड़तालीस वनमालाओं से सुसज्जित, क्षेममय (उपद्रव रहित) शिव (मंगलमय) किंकर देवों के दण्डों से रक्षित हैं। जिनका भूमि तल गोबर आदि से लीपने और दीवारें चूने आदि से पोतने के कारण सुशोभित, उन भवनों की दीवारों पर गोशीर्ष चंदन और सरस रक्त चंदन से लिप्त हाथों से छापे लगे होते हैं। जहाँ चंदन के कलश रखे होते हैं। उनके तोरण और प्रतिद्वार चंदन के कलशों से सुशोभित होते हैं। वे ऊपर से नीचे तक लटकती हुई लम्बी और विपुल पुष्पमालाओं के गुच्छों से युक्त तथा पंचवर्ण के सरस. सुगंधित पुष्पों की शोभा से युक्त होते हैं। काले अगुरु, श्रेष्ठ चीड़ा लोबान तथा धूप की महकती हुई सुगंध से रमणीय उत्तम सुगंधित होने से गंधवट्टी के समान लगते हैं। वे अप्सरागण के संघों से व्याप्त, दिव्य वादिन्त्रों के शब्दों से शब्दायमान, सर्व रत्नमय, अति स्वच्छ, स्निग्ध, कोमल, घिसे हुए, साफ किये हुए, रज रहित, निर्मल, निष्पंक, निरावरण, कान्ति वाले, प्रभा वाले, किरणों से युक्त, उद्योत वाले, मन को प्रसन्न करने वाले दर्शनीय, अभिरूप और प्रतिरूप होते हैं। ऐसे भवनों में पर्याप्तक और अपर्याप्तक भवनवासी देवों के स्थान हैं। वे उपपात की अपेक्षा लोक के असंख्यातवें भाग में, समुद्घात की अपेक्षा लोक के असंख्यातवें भाग में और स्वस्थान की अपेक्षा लोक के असंख्यातवें भाग में है। वहाँ बहुत से भवनवासी देव निवास करते हैं। वे इस प्रकार हैं
१. असुरकुमार २. नागकुमार ३. सुपर्णकुमार ४. विद्युतकुमार ५. अग्निकुमार ६. द्वीपकुमार ७. उदधिकुमार ८. दिक्कुमार ९. पवनकुमार और १० स्तनितकुमार-ये दस प्रकार के भवनवासी देव हैं।
इनके मुकुट या आभूषणों में अंकित चिह्न क्रमश: इस प्रकार हैं - १. चूडामणि २. नाग का फण ३. गरुड ४. वज्र ५. पूर्ण कलश चिह्न से अंकित मुकुट ६. सिंह ७. श्रेष्ठ अश्व ८. हस्ती ९. मकर (मगरमच्छ) और १०. वर्द्धमानक (शरावसम्पुट) रूप चिह्नों से युक्त ऐसे क्रमश: असुरकुमार आदि भवनवासी देव हैं। वे सुरूप (सुंदर रूप वाले) महर्द्धिक (महान् ऋद्धि वाले) महान् कांति वाले, महान् बलशाली, महायशस्वी, महान् अनुभाग वाले, महान् सुख वाले, हार से सुशोभित वक्षस्थल वाले, कडों
और बाजुबंदों से स्तम्भित भुजा वाले, अंगद, कुण्डल और दोनों कपोलों को स्पर्श करने वाले कर्णपीठ के धारक, विचित्र हस्ताभरण वाले, विचित्र माला और मस्तक पर मुकुट धारण किये हुए, कल्याणकारी श्रेष्ठ वस्त्र पहने हुए, कल्याणकारी श्रेष्ठ माला और विलेपन के धारक, देदीप्यमान शरीर वाले और लम्बी लटकती हुए वनमाला को धारण करने वाले, दिव्य वर्ण, दिव्य गंध, दिव्य स्पर्श, दिव्य संहनन, दिव्य संस्थान, दिव्य ऋद्धि, दिव्य द्युति, दिव्य प्रभा, दिव्य छाया, दिव्य अर्चि (ज्योति), दिव्य तेज एवं दिव्य लेश्या से दशों दिशाओं को प्रकाशित करते हुए (सुशोभित करते हुए) वे भवनवासी देव वहाँ
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