Book Title: Pragnapana Sutra Part 01
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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प्रज्ञापना सूत्र
लोयस्स असंखिज्जइ भागे, सट्टाणेणं लोयस्स असंखिज्जइ भागे । तत्थ णं बहवे तमप्पभा पुढवी णेरड्या परिवसंति । काला कालोभासा गंभीर लोम हरिसा भीमा उत्तासणगा परमकिण्हा वण्णेणं पण्णत्ता समणाउसो ! । ते णं तत्थ णिच्चं भीया, णिच्चं तत्था, णिच्चं तसिया, णिच्चं उव्विग्गा, णिच्चं परममसुहसंबद्धं णरगभयं पच्चणुभवमाणा विहरंति ॥ १०२ ॥
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भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन् ! पर्याप्तक और अपर्याप्तक तमः प्रभा नामक छठी पृथ्वी (नरक) के नैरयिकों के स्थान कहां कहे गये हैं ? हे भगवन् ! तमः प्रभा पृथ्वी के नैरयिक कहां रहते हैं ?
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उत्तर - हे गौतम! तमः प्रभा पृथ्वी की मोटाई एक लाख सोलह हजार योजन हैं उसमें ऊपर के भाग से एक हजार योजन प्रवेश कर और नीचे एक हजार योजन छोड़ कर शेष एक लाख चौदह हजार प्रमाण मध्य भाग में तमः प्रभा पृथ्वी के नैरयिकों के पांच कम एक लाख नरकावास हैं, ऐसा कहा गया है। वे नरक अंदर से गोल, बाहर से चौकोण और नीचे से क्षुरप्र-उस्तुरे के आकार वाले हैं। वे प्रकाश के अभाव में निरन्तर अंधकार वाले, ग्रह, चन्द्रमा, सूर्य, नक्षत्र, तारे आदि ज्योतिष्कों की प्रभा से रहित हैं। उनके तलभाग मेद, चर्बी, मवाद के पटल, रुधिर और मांस के कीचड के लेप से लिप्त, अशुचि अपवित्र, बीभत्स, कर्कश (कठोर) स्पर्शवाले, दुःसह और अशुभ नरक हैं। उन नरकों में अशुभ वेदनाएँ हैं। इनमें तम:प्रभा पृथ्वी के पर्याप्तक और अपर्याप्तक नैरयिकों के स्थान कहे गये हैं। वे उपपात की अपेक्षा लोक के असंख्यातवें भाग में, समुद्घात की अपेक्षा लोक के असंख्यातवें भाग में और स्व स्थान की अपेक्षा लोक के असंख्यातवें भाग में है । वहाँ तमः प्रभा पृथ्वी के बहुत से नैरयिक निवास करते हैं। हे आयुष्मन् श्रमणो ! वे काले, काली आभा वाले, गंभीर रोमाञ्च वाले, भीम (भयंकर), उत्कट त्रासजनक और अतीव काले वर्ण के कहे गये हैं। वे नित्य भयभीत, सदैव त्रस्त, नित्य परस्पर एक दूसरे को त्रास पहुँचाए हुए, सदैव उद्विग्न तथा नित्य अत्यंत अशुभ रूप और संबद्ध - निरंतर नरक भय का प्रत्यक्ष अनुभव करते हुए रहते हैं ।
कहि णं भंते! तमतमप्पभा पुढवी णेरइयाणं पज्जत्तापज्जत्तगाणं ठाणा पण्णत्ता ? कहि णं भंते! तमतमप्पभापुढवीणेरड्या परिवसंति ? गोयमा ! तमतमप्पभाए पुढवीए अट्ठोत्तर- जोयण सयसहसस्सबाहल्लाए उवरि अद्धतेवण्णं जोयणसहस्साइं ओगाहित्ता हिट्ठा, वि अद्धतेवण्णं जोयणसहस्साइं वज्जित्ता मज्झे तीसु जोयणसहस्सेसु एत्थ णं तमतमप्पभा पुढवी णेरड्याणं पज्जत्तापज्जत्तगाणं पंचदिसिं पंच अणुत्तरा महइमहालया महाणिरया पण्णत्ता । तंजहा - काले महाकाले रोरुए महारोरुए अपइट्ठाणे । ते णं रगा अंतो वट्टा, बाहिं चउरंसा, अहे खुरप्पसंठाणसंठिया, णिच्चंधयार - तमसा,
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