Book Title: Pragnapana Sutra Part 01
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
View full book text
________________
प्रथम प्रज्ञापना पद - रूपी अजीव प्रज्ञापना
३७
*************************************************************-*-*22******
दोनों सुगंध और दुर्गन्ध रूप, रस से तिक्त कटु आदि पांच रस रूप, स्पर्श से कर्कश, मृदु, गुरु, लघु, शीत, उष्ण स्पर्श रूप छह स्पर्श परिणत और संस्थान से परिमंडल आदि पांचों संस्थान रूप परिणत होते हैं २३ । _ विवेचन - आठ स्पर्शों में से प्रत्येक के रूप में परिणत पुद्गल यदि पांच वर्ण, दो गंध, पांच रस छह स्पर्श (आठ स्पर्श में से प्रतिपक्षी एवं स्व स्पर्श को छोड़ कर) तथा पांच संस्थानों के रूप में परिणत हों तो उनके २३+२३+२३+२३+२३ +२३+२३+२३=१८४ भंग हो जाते हैं।
जे संठाणओ परिमंडल संठाण परिणता, ते वण्णओ काल वण्ण परिणता वि, णील वण्ण परिणता वि, लोहिय वण्ण परिणता वि, हालिद्द वण्ण परिणता वि, सुक्किल वण्ण परिणता वि, गंधओ सुब्भि गंध परिणता वि, दुब्भि गंध परिणता वि, रसओ तित्त रस परिणता वि, कडुय रस परिणता वि, कसाय रस परिणता वि, अंबिल रस परिणता वि, महुर रस परिणता वि, फासओ कक्खड फास परिणता वि, मउय फास परिणता वि, गरुय फास परिणता वि, लहुय फास परिणता वि, सीय फास परिणता वि, उसिण फास परिणता वि, णिद्ध फास परिणता वि, लुक्ख फास परिणता वि २०।
भावार्थ - जो संस्थान से परिमण्डल संस्थान रूप परिणत होते हैं वे वर्ण से कृष्ण वर्ण आदि पांच वर्ण रूप, गंध से दोनों सुगंध और दुर्गन्ध रूप, रस से तिक्त कटु आदि पांचों रसों रूप, स्पर्श से आठों ही स्पर्शों रूप परिणत होते हैं २० । . जे संठाणओ वट्ट संठाण परिणता, ते वण्णओ काल वण्ण परिणता वि, णील वण्ण परिणता वि, लोहिय वण्ण परिणता वि, हालिद्द वण्ण परिणता वि, सुक्किल वण्ण परिणता वि, गंधओ सुब्भि गंध परिणता वि, दुब्भि गंध परिणता वि, रसओ तित्त रस परिणता वि, कडुय रस परिणता वि, कसाय रस परिणता वि, अंबिल रस परिणता वि, महुर रस परिणता वि फासओ कक्खड फास परिणता वि, मउय फास परिणता वि, गरुय फास परिणता वि, लहुय फास परिणता वि, सीय फास परिणता वि, उसिण फास परिणता वि, णिद्ध फास परिणता वि, लुक्ख फास परिणता वि २०।
भावार्थ - जो संस्थान से वृत्त संस्थान परिणत होते हैं वे वर्ण से कृष्ण वर्ण आदि पांच वर्ण रूप, गंध से दोनों सुगंध और दुर्गन्ध रूप, रस से तिक्त कटु आदि पांचों रसों रूप, स्पर्श से आठों ही स्पर्शों रूप परिणत होते हैं २०।
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org