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प्रथम प्रज्ञापना पद - पंचेन्द्रिय जीव प्रज्ञापना
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स्त्रियों की प्रधानता (बुद्धिमता, योग्यता आदि) होने से जाति सम्पन्न और किसी में पुरुषों की विशिष्टता से कुल सम्पन्न कहा है। स्त्रियों की योग्यता के पीछे जिनका माप किया जावे वह जाति है और पुरुषों की क्षमता के पीछे कुल (संभावना-मात्र की है। विशेष ज्ञानी गम्य)।
से किं तं कुलारिया? कुलारिया छविहा पण्णत्ता। तंजहा - उग्गा, भोगा, राइण्णा, इक्खागा, णाया, कोरव्वा। से तं कुलारिया॥६८॥
भावार्थ - प्रश्न - कुल आर्य कितने प्रकार के कहे गये हैं ?
उत्तर - कुल आर्य छह प्रकार के कहे गये हैं वे इस प्रकार हैं - १. उग्र २ भोग ३. राजन्य ४. इक्ष्वाकु ५. ज्ञात और,६. कौरव्य। इस प्रकार कुल आर्य कहे हैं। - विवेचन - पितृ पक्ष को कुल कहते हैं। जिनका पितृपक्ष निर्मल हो उसको कुल आर्य कहते हैं।
से किं तं कम्मारिया? कम्मारिया अणेग विहा पण्णत्ता। तंजहा - दोसिया, सोत्तिया, कप्पासिया, सुत्तवेयालिया, भंडवेयालिया, कोलालिया, णरवाहणिया॥ जे यावण्णे तहप्पगारा।से तं कम्मारिया॥६९॥
भावार्थ - प्रश्न - कर्म आर्य कितने प्रकार के कहे हैं? - उत्तर - कर्म आर्य अनेक प्रकार के गये हैं। वे इस प्रकार हैं - १. दौष्यिक २. सौत्रिक ३. कार्पासिक ४. सूत्रवैतालिक ५. भाण्ड वैतालिक ६. कोलालिक और ७. नरवाहनिक। इसी प्रकार के अन्य जितने भी आर्य कर्म हों, उन्हें कर्म आर्य समझना चाहिये। इस प्रकार कर्म आर्य कहे गये हैं।
विवेचन - कर्म आर्य के ४ से ७ तक के भेदों का अर्थ इस प्रकार है -
४.. सूत्र वैतालिक (सूत्र वैचारिक) - सूत्रविचार अर्थात् सूत की उच्चता, हीनता, मजबूती, अल्प मजबूती, अमुक वस्त्र बनने योग्य, अयोग्य. आदि बताने के धन्धे से आजीविका करना सूत्र वैचारिक का अर्थ है।
५. भाण्ड वैतालिक (भाण्ड वैचारिक) - भाण्ड अर्थात् धातु के बर्तनों की योग्यता, टिकाऊपन, अटिकाऊपन, अमुक काम में लेने योग्य है, इत्यादि बर्तनों की योग्यता बताने का धन्धा करना भाण्ड वैचारिक का अर्थ है।
६. कोलालिक - मिट्टी के बर्तनों का धन्धा करना। ७. नरवाहनिका - कावड़, पालखी, शिविका आदि के द्वारा मनुष्यों को ढोने का धन्धा करना।
कपडे का व्यापार, सूत का व्यापार, कपास का व्यापार, किराणे का व्यापार, मिट्टी के बर्तनों का व्यापार, सोने, चांदी, जवाहरात का व्यापार आदि आर्य कर्म हैं।
कर्मादान के व्यापारों के सिवाय प्रायः सभी आर्य व्यापारों में समझे जाते हैं। वर्तमान में स्टेशनरी,
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